4 दिन की बच्ची को जिंदा दफनाने के लिए खोदा जा रहा था गड्ढा, लेकिन एक रिक्शेवाले ने ऐसे बचाई जान

पुलिस के मुताबिक बच्ची को जुबली बस स्टेशन के पीछे एक सुनसान जगह पर दफनाने की तैयारी चल रही थी, तभी एक रिक्शेवाले ने देख लिया और पुलिस को खबर कर दी। जब पुलिस वहां पहुंची तो देखा कि एक युवक गड्ढा खोद रहा था। कुछ दूरी पर एक बूढ़ी औरत खड़ी थी।

Asianet News Hindi | Published : Nov 1, 2019 10:35 AM IST / Updated: Nov 01 2019, 04:10 PM IST

हैदराबाद. सिकंदराबाद में 4 दिन की एक बच्ची को को जिंदा दफनाने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन मौके पर पुलिस पहुंच गई और आरोपियों को हिरासत में ले लिया। पुलिस ने दादा, परदादी और उनके गांव के एक शख्स को गिरफ्तार किया है। आरोपियों ने सफाई दी कि बच्ची कोई हरकत नहीं कर रही थी, इसलिए उन्हें लगा कि उसकी मौत हो गई है। 

एक रिक्शा चालक ने पुलिस को बुलाया
पुलिस के मुताबिक बच्ची को जुबली बस स्टेशन के पीछे एक सुनसान जगह पर दफनाने की तैयारी चल रही थी, तभी एक रिक्शेवाले ने देख लिया और पुलिस को खबर कर दी। जब पुलिस वहां पहुंची तो देखा कि एक युवक गड्ढा खोद रहा था, जबकि एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति उसके पास खड़े एक तौलिये में लिपटी बच्ची को पकड़े हुए था। कुछ दूरी पर एक बूढ़ी औरत खड़ी थी।

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तौलिया में लिपटी थी बच्ची 
पुलिस अधिकारियों ने कहा,  "जब उन्होंने उस व्यक्ति से पूछताछ की, तो उन्होंने कहा कि बच्ची की मौत हो चुकी है। लेकिन जब पुलिस ने तौलिया हटाया तो देखा कि बच्ची जिंदा थी। पूछताछ में पता चला कि अधेड़ उम्र का व्यक्ति उसका दादा, महिला बड़ी दादी और गड्ढा खोदने वाला युवक उनके गांव में उनका परिचित था। 

28 अक्टूबर को हुआ जन्म

बच्चे के पिता राजू और मां मानसा सिरिसिला जिले के वेमुलावाड़ा ब्लॉक के सांकेपल्ली गांव के हैं और मजदूर करके जीवन यापन करते हैं। यह उनका पहला बच्चा है। मां मनासा ने 28 अक्टूबर को करीमनगर शहर के एक अस्पताल में बच्ची को जन्म दिया। उसे मिर्गी का दौरा पड़ा और उसका इलाज चल रहा है। 

इलाज के लिए हैदराबाद लाया गया था
पुलिस ने कहा कि बच्चे के दादा ने मां को बताया कि बच्ची के गुप्तांग में कुछ दिक्कत है और करीमनगर में डॉक्टरों ने उसे बेहतर इलाज के लिए हैदराबाद के निलॉफर अस्पताल में रेफर कर दिया था। निलॉफर के डॉक्टरों ने सुझाव दिया कि बच्ची का ऑपरेशन किया जाना चाहिए और उन्हें कुछ दिनों के बाद वापस आने के लिए कहा। अस्पताल से लौटते वक्त दादा ने महसूस किया कि बच्ची में कोई हलचल नहीं थी, उन्होंने सोचा कि बच्ची की मौत हो गई। इसके बाद हैदराबाद में ही शव को दफनाने का फैसला किया क्योंकि उन्हें डर था कि बच्ची की मां शव को देख नहीं पाएगी।

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