NHRC की रिपोर्ट: बंगाल में 'कानून का राज' नहीं 'शासक का कानून' चल रहा, चुनाव बाद हिंसा की जांच CBI करे

सात आपरेशनल टीम में प्रत्येक में एक एसएसपी, दो असिस्टेंट रजिस्ट्रार विधि, 9 डीएसपी, 13 इंस्पेक्टर, 10 कांस्टेबल, 2 जेआरसी के अलावा अन्य स्टॉफ शामिल रहे। इन लोगों ने ही फिल्ड विजिट कर जानकारियां एकत्र की और शिकायतें ली। इसके अलावा मुर्शिदाबाद, कोलकाता, पूर्वी मेदिनीपुर, हावड़ा, पूर्वी वर्धमान में कैंप लगाकर सुनवाई की गई। 

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम ने सुनवाई कर जांच रिपोर्ट सौंप दी है। पचास पेज की पहली रिपोर्ट में टीम ने कहा है कि राज्य प्रशासन ने जनता में अपना विश्वास खो दिया है। बंगाल में ‘कानून का राज’ नहीं है बल्कि यहां ‘शासक का कानून’ चल रहा है।  

जांच रिपोर्ट में यह बताया गया कि कमेटी की सुनवाई में 1900 से अधिक शिकायतें मिली है। इनमें ढेर सारे मामले गंभीर अपराध से संबंधित थे। रेप, हत्या, आगजनी जैसे मामले सैकड़ों की संख्या में सामने आए जिनकी शिकायतें तक दर्ज नहीं की जा सकी हैं। पुलिस पर लोगों का विश्वास ही नहीं है, कहीं उनकी सुनवाई नहीं हो रही।

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रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि करीब 1979 केस को राज्य के डीजीपी को भेजा गया है ताकि मामले में एफआईआर दर्ज हो। 

रेप, मर्डर के मामले हो सीबीआई के हवाले, अन्य गंभीर अपराधों के लिए एसआईटी

कमेटी ने कहा है कि राज्य में चुनाव बाद हुई हिंसा में बहुत सारे मर्डर और रेप हुए हैं। ऐसे मामलों की जांच सीबीआई से कराई जाए। और इस मामले की सुनवाई राज्य के बाहर हो। इसके अलावा अन्य गंभीर अपराधों के लिए एसआईटी का गठन किया जाए। एसआईटी की मानिटरिंग कोर्ट सीधे करे। इसके अलावा पीडि़तों को आर्थिक सहायता के साथ उनके पुनर्वास, सुरक्षा और आजीविका की व्यवस्था कराई जाए। 

कमेटी ने यह भी सिफारिश की है कि रिटायर्ड जज की देखरेख में मानिटरिंग कमेटी बने और हर जिले में एक स्वतंत्र अफसर आब्जर्वर के रूप में तैनात किया जाए। 

कमेटी ने यह भी सिफारिश की है कि जांच का आदेश जितनी जल्दी हो सके हो क्योंकि दिन ब दिन स्थिति खराब होती जा रही है। पीडि़तों को लगातार धमकियां दी जा रही हैं। 

हाईकोर्ट कोलकाता के आदेश पर गठित हुई थी कमेटी

पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा के मामले में सुनवाई करते हुए कोलकाता हाईकोर्ट ने मानवाधिकार आयोग को एक जांच कमेटी गठित कर मामले की जांच का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राजीव जैन की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय कमेटी का गठन किया था।

इस टीम में अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष अतीफ रशीद, महिला आयोग की डॉ.राजूबेन देसाई, एनएचआरसी के डीजी इंवेस्टिगेशन संतोष मेहरा, पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के रजिस्ट्रार प्रदीप कुमार पंजा, राज्य लीगर सर्विस कमिशन के सचिव राजू मुखर्जी, डीआईजी मंजिल सैनी शामिल रहीं। 

सात अलग-अलग टीमों ने की जांच

कोर्ट के आदेश के बाद कमेटी गांव से लेकर विभिन्न जगहों पर गई जहां चुनाव बाद हिंसा की शिकायतें आई थी। आयोग की टीम ने पाया कि पूरे राज्य में ऐसी स्थितियां हैं। कुछ प्राथमिक शिकायतें लेने के बाद टीम वापसी लौट आई। इसके बाद पांच टीमों का गठन किया गया। बाद में दो और टीमें बढ़ा दी गई।

इन टीमों ने राज्यभर में दौरा किया और सुनवाई की। सात आपरेशनल टीम में प्रत्येक में एक एसएसपी, दो असिस्टेंट रजिस्ट्रार विधि, 9 डीएसपी, 13 इंस्पेक्टर, 10 कांस्टेबल, 2 जेआरसी के अलावा अन्य स्टॉफ शामिल रहे। इन लोगों ने ही फिल्ड विजिट कर जानकारियां एकत्र की और शिकायतें ली। इसके अलावा मुर्शिदाबाद, कोलकाता, पूर्वी मेदिनीपुर, हावड़ा, पूर्वी वर्धमान में कैंप लगाकर सुनवाई की गई। 

311 स्पॉट विजिट के बाद मिली 1900 से अधिक शिकायतें

इन टीमों ने 20 दिनों तक लगातार काम किया और 311 स्पॉट विजिट किया, सुनवाई कैंप लगाए। इस दौरान 1979 शिकायतें रेप, मर्डर, आगजनी सहित विभिन्न गंभीर अपराधों के सामने आई। 

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