एक दिन में बना था निर्भया के मां पिता का पासपोर्ट, इन पुलिसवालों ने 72 घंटों के दरिंदों को पकड़ा था

निर्भया केस में दोषियों की मौत देने में भले ही 7 साल से ज्यादा का वक्त लग गया हो, लेकिन दोषियों को पकड़ने में मजह 72 घंटे को वक्त लगा था। शुरुआता जांच में पुलिस के हाथ खाली थे, लेकिन जब तत्कालीन डीसीपी छाया शर्मा ने निर्भया की हालत देखी तो उनको इतना गहरा धक्का लगा कि अपनी टीम तैयार की और तीन दिन के अंदर ही सभी 6 आरोपियों को पकड़ लिया।

Asianet News Hindi | Published : Feb 2, 2020 8:10 AM IST / Updated: Feb 02 2022, 10:12 AM IST

नई दिल्ली. निर्भया केस में दोषियों की मौत देने में भले ही 7 साल से ज्यादा का वक्त लग गया हो, लेकिन दोषियों को पकड़ने में मजह 72 घंटे को वक्त लगा था। शुरुआता जांच में पुलिस के हाथ खाली थे, लेकिन जब तत्कालीन डीसीपी छाया शर्मा ने निर्भया की हालत देखी तो उनको इतना गहरा धक्का लगा कि अपनी टीम तैयार की और तीन दिन के अंदर ही सभी 6 आरोपियों को पकड़ लिया।

41 पुलिसवालों की टीम बनाई गई
असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर से लेकर डीसीपी रैंक के ऐसे 41 पुलिसवालों की टीम बनी थी, जो दिन रात निर्भया केस में जुटी रही। दोषियों की गिरफ्तारी के बाद तब के पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने इनकी तारीफ की थी। 

एक दिन के अंदर बना था निर्भया के मां-बाप का पासपोर्ट
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पुलिस ने महज एक दिन के अंदर सिंगापुर ले जाने के लिए निर्भया के मां-बाप का पासपोर्ट बनवाया था। सरोजनी नगर मार्केट से उनके लिए खरीदारी की। 

'जिन लोगों ने मेरे साथ ये गंदा काम किया है उन्हें छोड़ना मत'
जब पहली बार डीसीपी साउथ छाया शर्मा ने निर्भया से अस्पताल में मुलाकात की थी, तब निर्भया ने छाया शर्मा से कहा था कि जिन लोगों ने मेरे साथ ये गंदा काम किया है उन्हें छोड़ना मत। निर्भया की मौत के पहले के इस बयान को डाइइंग डिक्लेरेशन माना गया

एक दोषी की जेल में मिली थी लाश, एक को छोड़ा गया
निर्भया केस में कुल 6 दोषी थे, जिसमें से एक (मुख्य दोषी राम सिंह) ने जेल के अंदर ही आत्महत्या कर ली। एक को नाबालिग होने की वजह से 3 साल की सजा के बाद रिहा कर दिया गया।

निर्भया ने सिंगापुर में तोड़ा था दम
दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका बस स्टॉप पर 16-17 दिसंबर 2012 की रात पैरामेडिकल की छात्रा अपने दोस्त को साथ एक प्राइवेट बस में चढ़ी। उस वक्त पहले से ही ड्राइवर सहित 6 लोग बस में सवार थे। किसी बात पर छात्रा के दोस्त और बस के स्टाफ से विवाद हुआ, जिसके बाद चलती बस में छात्रा से गैंगरेप किया गया। लोहे की रॉड से क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गईं। छात्रा के दोस्त को भी बेरहमी से पीटा गया। बलात्कारियों ने दोनों को महिपालपुर में सड़क किनारे फेंक दिया गया। पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में चला, सुधार न होने पर सिंगापुर भेजा गया। घटना के 13वें दिन 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में छात्रा की मौत हो गई।

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