केंद्र सरकार ने वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए बड़ा कदम उठाते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है। कहा जा रहा है कि इस कानून के लागू होने के बाद विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होंगे।
One Nation One Election: भारत में वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ चुकी है। केंद्र सरकार ने वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए बड़ा कदम उठाते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है। कहा जा रहा है कि इस कानून के लागू होने के बाद विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होंगे।
करोड़ों रुपये की बचत
लॉ कमीशन ने 2015 की रिपोर्ट में कहा था कि अगर देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराएं जाएं तो करोड़ों रुपयों की बचत तो होगी ही साथ ही विकास कार्यक्रमों को समय-समय पर रोकने की नौबत नहीं आएगी। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के खर्च के तीन गुना खर्च 2014 के लोकसभा चुनाव में हुए थे। हर बार खर्च तीन से चार गुना बढ़ रहा है। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में 3870 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। जबकि बिहार चुनाव में 300 करोड़ तो गुजरात चुनाव में 240 करोड़। अगर इसी तरह विधानसभा चुनावों के खर्च और लोकसभा चुनाव के खर्च जोड़ें तो कई हजार करोड़ खर्च होंगे। जबकि इलेक्शन कमीशन के एक अनुमान के अनुसार 4500 करोड़ रुपये के आसपास एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने में खर्च होंगे।
चार चुनाव हुए थे एक साथ
देश में पहला चार चुनाव एक साथ हुए थे। देश के आजाद होने के बाद 1952 का पहला चुनाव, 1957, 1962 और 1967 में हुए चुनाव में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे।
कब टूटी परंपरा?
दरअसल, 1968 और 1969 में कई राज्यों की विधानसभाएं पहले ही भंग होने से पहले चुनाव हो गए। इस वजह से 1970 में हुए लोकसभा चुनाव में यह परंपरा टूट गई। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वन नेशन-वन इलेक्शन को लेकर बहस शुरू हुई।
30 साल में कोई ऐसा वर्ष नहीं जब चुनाव न हुआ हो
नीति आयोग के बिबेक देबराय और किशोर देसाई की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 30 सालों में कोई ऐसा साल खाली नहीं गया जब कोई चुनाव किसी राज्य में या लोकसभा चुनाव न हो रहा हो।
पढ़िए वन नेशन-वन इलेक्शन पर नीति आयोग की विस्तृत रिपोर्ट…