पीके का राहुल गांधी को सलाह: लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बांछित सफलता नहीं मिले तो ब्रेक लेकर किसी दूसरे को कमान सौंपे

प्रशांत किशोर ने कहा कि लोकसभा चुनाव में अगर कांग्रेस को बांछित नतीजे नहीं मिलते हैं तो राहुल गांधी को अपना कदम पीछे खींचने का विचार करते हुए संगठन को दूसरों के हवाले कुछ दिनों तक कर देना चाहिए।

Dheerendra Gopal | Published : Apr 7, 2024 1:54 PM IST / Updated: Apr 08 2024, 12:43 AM IST

PK on Rahul Gandhi strategy: बिहार के राजनेता व पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रशांत किशोर ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर हमला बोला है। प्रशांत किशोर ने कांग्रेस की असफलता के लिए रणनीतिक नासमझी को दोषी बताया है। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में अगर कांग्रेस को बांछित नतीजे नहीं मिलते हैं तो राहुल गांधी को अपना कदम पीछे खींचने का विचार करते हुए संगठन को दूसरों के हवाले कुछ दिनों तक कर देना चाहिए। उन्होंने राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी के राजनीति में न आने के फैसले को सही स्ट्रैटेजी करार दिया। कहा कि राजनीति में कभी कभी दो कदम पीछे भी हटना चाहिए।

एक न्यूज एजेंसी के साथ बातचीत में प्रशांत किशोर ने कहा कि राहुल गांधी दस सालों से कांग्रेस को आगे बढ़ाने में लगे हैं लेकिन अपनी अक्षमता की वजह से वह लगातार उसे कमजोर कर रहे हैं। वह न तो पीछे ही हट रहे ना ही किसी को आगे बढ़कर लीड लेने का मौका दे रहे। पीके ने कहा कि जब आप पिछले 10 साल से एक ही काम कर रहे हैं और उसमें कोई सफलता नहीं मिली है तो ब्रेक लेने में कोई बुराई नहीं है। आपको इसे किसी और को पांच साल के लिए करने देना चाहिए। आपकी मां ने ऐसा किया था। पीके ने याद दिलाते हुए कहा कि अपने पति राजीव गांधी की हत्या के बाद राजनीति से दूर रहने और 1991 में पी वी नरसिम्हा राव को कार्यभार संभालने का मौका दिया।

राहुल गांधी पर पीके रहे हमलावर

पीके ने कहा कि दुनिया भर में अच्छे नेताओं की विशेषता यह है कि वह जानते हैं कि उनके पास क्या कमी है और उसे कैसे दूर किया जा सके। लेकिन राहुल गांधी को ऐसा लगता है कि वह सब कुछ जानते हैं। प्रशांत किशोर ने कहा कि कांग्रेस और उसके समर्थक किसी भी व्यक्ति से बड़े हैं। गांधी को जिद्दी नहीं होना चाहिए कि बार-बार विफलताओं के बावजूद वह ही पार्टी के लिए काम करेंगे। उन्होंने कहा कि 2014 के चुनावों में कांग्रेस 206 सीटों से घटकर 44 सीटों पर आ गई थी जब वह सत्ता में थी और भाजपा का विभिन्न संस्थानों पर बहुत कम प्रभाव था।

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