म्यांमार रोहिंग्या मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ प्रस्ताव पास, 134 देशों ने की यह मांग

संयुक्त राष्ट्र महासभा में म्यांमार में रोहिंग्या के खिलाफ हो रहे अत्याचार पर रोक लगाने व उनको न्याय दिलाने की मांग को लेकर पेश किया गया प्रस्ताव पारित हो गया। इस प्रस्ताव को 193 देशों में से 134 देशों ने समर्थन किया है। जबकि 28 राष्ट्रों ने विरोध किया है। 

वॉशिंगटन. म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार के खिलाफ शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्ताव पारित हो गया है। यूएन के 193 सदस्य देशों में से 134 ने प्रस्ताव का समर्थन और 9 देशों ने विरोध किया है। जबकि 28 देश वोटिंग में शामिल नहीं हुए। प्रस्ताव में रोहिंग्या समेत सभी अल्पसंख्यकों पर अत्याचार रोकने और उन्हें न्याय दिलाने की मांग की गई है। 

कानूनी तौर पर बाध्य नहीं होगा म्यांमार 

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म्यांमार इसे मानने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य नहीं होगा, लेकिन इससे पता चलता है कि इस मुद्दे पर दुनिया की सोच क्या है। महासभा की बैठक में म्यांमार के राजदूत हाऊ डो सुआल ने प्रस्ताव पास करने की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह मानवाधिकार नियमों को लेकर दोहरे मापदंड और भेदभावपूर्ण रवैये का उदाहरण है। इसमें रोहिंग्या बहुल्य रखाइन प्रांत की समस्या का समाधान नहीं है। म्यांमार पर अवांछित राजनीतिक दबाव बनाने के लिए प्रस्ताव पेश किया गया है।

इंटरनेशनल कोर्ट में भी उठाया जा चुका है मुद्दा 

रोहिंग्या मुस्लिमों पर म्यांमार के सुरक्षाबल और सेना के अत्याचार का मुद्दा इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में दक्षिण अफ्रीकी मुस्लिम बहुल्य देश गांबिया ने उठाया था। उसने 12 अन्य मुस्लिम देशों के साथ मिलकर इसे आईसीजे के समक्ष रखा था। 

नोबेल पुरस्कार विजेता ने दिया था जवाब 

इसी महीने नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की ने आईसीजे में म्यांमार का पक्ष रखा था। उन्होंने कोर्ट को बताया कि रखाइन में हुई हिंसा एक आतंरिक विवाद था। यह सेना की चौकियों पर रोहिंग्या समुदाय के विद्रोहियों के हमले के बाद शुरू हुआ था। सूकी ने कहा था कि हो सकता है कि सैनिकों ने युद्ध अपराध किए हों, इस स्थिति में उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।

दूसरे देशों में पलायन कर रहे लोग 

म्यांमार एक बौद्ध बहुल्य देश है। यहां के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या की आबादी सबसे ज्यादा है। माना जाता है कि रोहिंग्या दूसरे स्थानों से पलायन कर पहुंचे हैं। साल 2017 में सरकार ने रोहिंग्या के खिलाफ सैन्य अभियान चलाने की अनुमति दी। इसके बाद से ही रोहिंग्या मुस्लिम बड़ी संख्या में बांग्लादेश और भारत समेत अन्य देशों में पलायन कर रहे हैं। 

संयुक्त राष्ट्र के फैक्ट फाइंडिंग मिशन समेत कई स्वतंत्र संस्थाओं ने अपने अध्ययन में रोहिंग्या के साथ म्यांमार की सेना के अत्याचार की पुष्टि की। कुछ ने कहा है कि रखाइन में रोहिंग्या मुस्लिमों के नरसंहार की जांच होनी चाहिए।

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