Railway Kavach Technology : रेलवे ने ट्रेनों को दुर्घटना से बचाने के लिए यह तकनीक विकसित की है। इसके जरिये ट्रेन यदि फुल स्पीड पर भी आमने-सामने एक ही ट्रैक पर हैं तो भी रेड सिग्नल पार करते ही इनमें ऑटोमैटिक ब्रेक लग जाएगा। इतना ही नहीं, इन दो ट्रेनों के पांच किमी के दायरे में चल रहीं बाकी ट्रेनें भी खुद-ब-खुद रुक जाएंगी।
नई दिल्ली। शुक्रवार का दिन भारतीय इतिहास के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ। आज दो ट्रेनों दो ट्रेन को एक ही ट्रैक पर आमने-सामने स्पीड से चलाया गया। एक ट्रेन के इंजन में खुद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव सवार थे। दोनों ट्रेनें आमने-समने आईं, लेकिन कुछ दूर पहले ही ऑटोमैटिक ब्रेक लग गए और दुर्घटना नहीं हुई। यह कौन सा 'कवच' था, जिसने इतनी तेजी से आ रही ट्रेनों के पहियों को मिनटों में थाम दिया। दरअसल, यह कचर तकनीक का कमाल था। जानिये, क्या थी यह तकनीक और कैसे काम करती है।
रेड सिग्नल पार करते ही लगते हैं ब्रेक
रेलवे ने ट्रेनों को दुर्घटना से बचाने के लिए यह तकनीक विकसित की है। इसके जरिये ट्रेन यदि फुल स्पीड पर भी आमने-सामने एक ही ट्रैक पर हैं तो भी रेड सिग्नल पार करते ही इनमें ऑटोमैटिक ब्रेक लग जाएगा। इतना ही नहीं, इन दो ट्रेनों के पांच किमी के दायरे में चल रहीं बाकी ट्रेनें भी खुद-ब-खुद रुक जाएंगी।
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बजट में किया गया था तकनीक का प्रावधान
आम बजट में 20,000 किमी रेल नेटवर्क, इंजन और रेलवे स्टेशनों पर कवच तकनीक लगाने का प्रावधान किया गया है। पहले चरण में दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-कोलकाता, दिल्ली-चेन्नई, दिल्ली-जम्मू, चेन्नई-कोलकाता आदि व्यस्त रेल नेटवर्क को कवर किया जा रहा है। रेलवे इस तकनीक को 2024 तक सभी जगह लगाने की कोशिश में जुटा है। रेल मंत्रालय का मानना है कि इस तकनीक के आने के बाद से आमने-सामने ट्रेनों की दुर्घटना पूरी तरह खत्म हो जाएंगी।
ड्राइवर से चूक होने पर कवच अलर्ट करेगा
कवच तकनीक ट्रेन चलाते समय लोको पॉयलट के सभी क्रियाकलापों जैसे ब्रेक, हार्न, थ्रोटल हैंडल आदि की मॉनिटरिंग करती है। ड्राइवर से इसी प्रकार की चूक होने पर कवच पहले ऑडियो-वीडियो के माध्यम से अलर्ट करेगा। प्रतिक्रिया नहीं होने पर चलती ट्रेन में ऑटोमेटिक ब्रेक लग जाएंगे। इसके अलावा ट्रेन को निर्धारित सेक्शन स्पीड से अधिक चलने नहीं देगा। कवच में आरएफआईडी डिवाइस ट्रेन के इंजन के भीतर, सिग्नल सिस्टम, रेलवे स्टेशन पर लगाए जाएंगे। कवच प्रणाली जीपीएस, रेडियो फ्रीक्वेंसी आदि तकनीक से चलाई जाएगी।
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