शिवसेना ने सामना के संपादकीय में राज्यपाल पर निशाना साधा। संपादकीय में कहा गया, राज्यपाल के पद पर आसीन व्यक्ति को कैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, यह भगत सिंह कोश्यारी ने दिखा दिया है। श्रीमान कोश्यारी कभी संघ के प्रचारक या भाजपा के नेता रहे भी होंगे, लेकिन आज वे महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य के राज्यपाल हैं, लगता है वे इस बात को अपनी सुविधानुसार भूल गए हैं।
मुंबई. शिवसेना ने सामना के संपादकीय में राज्यपाल पर निशाना साधा। संपादकीय में कहा गया, राज्यपाल के पद पर आसीन व्यक्ति को कैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, यह भगत सिंह कोश्यारी ने दिखा दिया है। श्रीमान कोश्यारी कभी संघ के प्रचारक या भाजपा के नेता रहे भी होंगे, लेकिन आज वे महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य के राज्यपाल हैं, लगता है वे इस बात को अपनी सुविधानुसार भूल गए हैं।
"रोज सुबह सरकार की बदनामी करने की मुहिम शुरू करते हैं"
महाराष्ट्र के भाजपा के नेता रोज सुबह सरकार की बदनामी करने की मुहिम शुरू करते हैं। यह समझा जा सकता है, लेकिन उस मुहिम की कीचड़ राज्यपाल अपने ऊपर क्यों उड़वा लेते हैं? भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में सत्ता गंवा चुकी है। यह बड़ी पीड़ा है, लेकिन इससे हो रहे पेटदर्द पर राज्यपाल द्वारा हमेशा लेप लगाने में कोई अर्थ नहीं। यह पीड़ा आगामी चार साल तो रहने ही वाली है। लेकिन भाजपा का पेट दुख रहा है इसलिए संवैधानिक पद पर विराजमान व्यक्ति को भी प्रसव पीड़ा हो, ये गंभीर है। लेकिन उस प्रसव पीड़ा का मुख्यमंत्री ठाकरे ने उपचार किया है।
"मर्यादा लांघ कर व्यवहार करे तो क्या होता है"
राज्यपाल पद पर बैठा बुजुर्ग व्यक्ति अपनी मर्यादा लांघ कर व्यवहार करे तो क्या होता है, इसका सबक देश के सभी राज्यपालों ने ले ही लिया होगा। राज्य के मंदिरों को खोलने के लिए भाजपा ने आंदोलन शुरू किया। उस राजनीतिक आंदोलन में राज्यपाल को सहभागी होने की आवश्यकता नहीं थी। जब यह आंदोलन शुरू था तब टाइमिंग साधते हुए माननीय राज्यपाल ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखा। वह पत्र मुख्यमंत्री तक पहुंचने की यात्रा के दौरान ही अखबारों तक पहुंच गया। राज्य में बार और रेस्टॉरेंट शुरू हो गए हैं। लेकिन प्रार्थना स्थल क्यों बंद हैं?
"मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्यपाल की धोती ही पकड़ ली"
आपको मंदिरों को बंद रखने के लिए कोई दैवीय संकेत मिल रहा है क्या? या आप अचानक सेक्युलर हो गए हैं? ऐसा सवाल राज्यपाल ने पूछा। इस पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्यपाल की धोती ही पकड़ ली और राजभवन को हिलाकर रख दिया, हमारे द्वारा ऐसी भाषा का प्रयोग करना असंसदीय हो सकता है, लेकिन मुख्यमंत्री ने विशेष ठाकरी शैली में ही राज्यपाल को कड़ा उत्तर दिया है, यह सच है।
"राज्यपाल ने आ बैल मुझे मार जैसा बर्ताव किया"
ठाकरे ने कड़े शब्दों में कहा, राज्यपाल महोदय, संविधान के अनुसार आपने राज्यपाल पद की शपथ ली है। आपको देश का संविधान व सेक्युलरिज्म स्वीकार नहीं है क्या? और आपको हमारे हिंदुत्व पर कुछ बोलने की आवश्यकता नहीं है। मेरे हिंदुत्ववाद को आपके प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार से मुख्यमंत्री ठाकरे ने एक लोहार की देते हुए ये दिखा दिया कि महाराष्ट्र का स्वाभिमान, अभिमान और तेवर क्या होता है? इस मामले में राज्यपाल ने आ बैल मुझे मार जैसा बर्ताव किया। लेकिन यहां बैल नहीं, बल्कि ‘शेर’ है, इस बात को वे कैसे भूल गए? मुख्य बात यह है कि इस पूरे ‘धुलाई’ मामले में भारतीय जनता पार्टी का भी वस्त्रहरण हो गया।
राज्यपाल के सहारे महाराष्ट्र सरकार पर हमला करना उन्हें महंगा पड़ गया। यह सारा मामला हम पर ही इस प्रकार से उलट आएगा और मुंह दबाकर मुक्के की मार सहनी पड़ेगी, उन्होंने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी। इस मामले में भाजपा और उनके द्वारा नियुक्त राज्यपाल इतने खुल चुके हैं कि अगर श्रीकृष्ण उन्हें वस्त्र दें, तब भी उनकी इज्जत नहीं बचेगी। महाराष्ट्र में कोरोना का खतरा बना हुआ है। चार घंटे पहले प्रधानमंत्री मोदी ऐसा कहते हैं और उनके मार्गदर्शन की परवाह न करते हुए भाजपा वाले और उनके राज्यपाल मंदिर खोलो, भीड़ हुई तब भी कोई बात नहीं, ऐसी नारेबाजी करते हैं। यह गैर-जिम्मेदाराना लक्षण हैं।
राज्यपाल कोश्यारी द्वारा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र भेजना अविवेकी कदम ही कहना पड़ेगा। इस पर मुख्यमंत्री ने एक ही मारा लेकिन सॉलिड मारा! यह शिवतेज देखकर मंदिरों के देवताओं ने भी आनंदपूर्वक घंटानाद किया होगा। यह घंटानाद प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तक पहुंचा ही होगा, तब वे राजभवन की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए राज्यपाल को वापस बुलाएंगे। और ज्यादा क्या कहें?