ट्रिपल तलाक कानून के खिलाफ कितने मामले दर्ज? सुप्रीम कोर्ट ने मांगा आंकड़ा

Swati Kumari   | ANI
Published : Jan 29, 2025, 03:55 PM ISTUpdated : Jan 29, 2025, 04:38 PM IST
supreme court on triple talaq

सार

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक कानून पर सरकार से आंकड़े मांगे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि अब तक इस कानून के तहत कितने मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।

ट्रिपल तलाक को अपराध घोषित करने वाले कानून को चुनौती देने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि अब तक इस कानून के तहत कितने मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत अब तक कितने मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई हैं और कितनों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में एक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने मांगा आंकड़ा

सुनवाई की शुरुआत में, केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मुस्लिम वूमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) एक्ट, 2019 की आवश्यकता को रेखांकित किया। इस पर मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अब केंद्र सरकार ने तीन तलाक कहने को ही अपराध घोषित कर दिया है, जो पहले से ही असंवैधानिक था। साथ ही, पीठ ने यह भी कहा कि अब सभी एफआईआर केंद्रीकृत हो गई हैं, और केंद्र से पूछा कि कितने मामले लंबित हैं और क्या अन्य उच्च न्यायालयों में भी इस कानून के खिलाफ कोई याचिका दाखिल की गई है।

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जनरल तुषार मेहता ने इस मामले में अपनी दलील रखते हुए कहा कि यह ऐसा है जैसे किसी व्यक्ति को यह कह देना कि अगले ही पल से तुम मेरी पत्नी नहीं हो, और इसी एक शब्द के द्वारा किसी इंसान को उसके जीवन और घर से बाहर निकाल दिया जाता है। शमशाद की दलीलों पर प्रतिक्रिया देते हुए, मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि घरेलू हिंसा अधिनियम में इस तरह के मामलों को शामिल किया जा सकता है"।

सीजेआई ने कही ये बात

सीजेआई ने कहा कि अधिकांश वकील यह तर्क नहीं देंगे कि तीन तलाक सही प्रथा है, शायद वे इसके अपराधीकरण के पहलू पर बहस करेंगे। याचिकाकर्ताओं के वकील ने जोर देकर कहा कि तीन तलाक की प्रथा खत्म हो गई है। पीठ ने यह देखते हुए कि 2019 अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाले कई संगठन हैं, सभी याचिकाकर्ताओं के नाम हटाने का फैसला किया और मामले को 'मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2019 को चुनौती के संबंध में' सीमित रखने का फैसला किया।

 

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