
नई दिल्ली। भारत में सोशल मीडिया के इस्तेमाल में तेज़ उछाल ने जहां लोगों को अपनी बात दुनिया तक पहुंचाने की ताकत दी है, वहीं गलत, झूठी या भड़काऊ जानकारी ने कई बार माहौल बिगाड़ा है। अब इसी खतरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से ऐसा सिस्टम बनाने को कहा है, जो किसी भी यूज़र-जनरेटेड कंटेंट को अपलोड होने से पहले ही जांच सके। कोर्ट का मानना है कि पोस्ट-टेकडाउन एक्शन काफी देर से होता है, और तब तक फेक, हिंसक या देश-विरोधी कंटेंट लाखों लोगों तक पहुँचकर समाज में तनाव फैला सकता है। क्या अब सोशल मीडिया पोस्ट अपलोड होने से पहले फिल्टर होंगी? यही बड़ा सवाल देश में नई बहस छेड़ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग मिनिस्ट्री (I&B Ministry) को निर्देश दिया है कि वह ऐसा सिस्टम तैयार करे जो पोस्ट डाले जाने से पहले ही कंटेंट को स्कैन कर सके ताकि खतरनाक, नुकसानदायक या देश-विरोधी कंटेंट वायरल होने से पहले ही रोका जा सके। यह आदेश सुनते ही डिजिटल दुनिया में एक बड़ा सवाल उठ गया कि क्या यह हमारी फ्रीडम ऑफ स्पीच को सीमित कर देगा या यह देश को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी कदम है?
सुप्रीम कोर्ट की बेंच CJI सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने साफ कहा कि वे किसी भी तरह की सेंसरशिप को बढ़ावा नहीं देना चाहते। लेकिन फिर भी, कोर्ट का सवाल बेहद गंभीर था कि “जब तक गलत कंटेंट हटाया जाता है, तब तक वह समाज में कितना नुकसान पहुंचा चुका होता है?” आज सोशल मीडिया पर एक पोस्ट अपलोड होते ही मिनटों में वायरल हो सकता है। कई बार ऐसा कंटेंट अफवाहें फैलाता है, लोगों को भड़काता है या देश की छवि और सुरक्षा को नुकसान पहुंचा सकता है। इसी वजह से कोर्ट का तर्क है कि पोस्ट हटाना एक बाद की प्रक्रिया है, लेकिन जरूरत है एक ऐसे सिस्टम की, जो पहले ही छानबीन कर सके।
OTT प्लेटफॉर्म्स, डिजिटल मीडिया और बड़े ब्रॉडकास्टर्स ने कोर्ट को बताया कि उनके पास पहले से ही सेल्फ-रेगुलेटरी कोड है। लेकिन कोर्ट का जवाब बेहद सीधा था: “अगर कोड इतना अच्छा काम करता है, तो गलत कंटेंट इतना वायरल क्यों होता है?” इस जवाब के बाद साफ है कि कोर्ट सोशल मीडिया कंपनियों की मौजूदा पॉलिसी से संतुष्ट नहीं है।
इस मामले में सबसे बड़ा विवाद का मुद्दा शब्द है-एंटी-नेशनल (Anti-National)। वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि इस शब्द की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। उनका तर्क था कि “अगर कोई सरकार की आलोचना करे, तो क्या वह एंटी-नेशनल है?” कोर्ट ने इसका जवाब एक उदाहरण से दिया-“अगर कोई व्यक्ति वीडियो बनाकर दावा करे कि भारत का एक हिस्सा किसी पड़ोसी देश में मिल जाना चाहिए कि क्या यह एंटी-नेशनल नहीं माना जाएगा?” यह बहस आज भी जारी है कि सीमांकन कहां होगा और कौन तय करेगा कि कौन-सा कंटेंट समाज को नुकसान पहुंचाता है।
देश के शीर्ष अदालत ने एक महत्वपूर्ण घटना का उल्लेख किया-ऑपरेशन सिंदूर। एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर ऐसा वीडियो अपलोड किया जिसमें वह पाकिस्तान का समर्थन करता दिखाई दिया। उसने बाद में दावा किया कि उसने एक घंटे में पोस्ट हटा दिया। लेकिन कोर्ट ने बताया: “एक घंटा भी काफी है। पोस्ट अपलोड होते ही वायरल हो जाता है।” इसलिए कोर्ट का मानना है कि रोकथाम (prevention) हटाने (post-take-down) से बेहतर है।
कोर्ट ने I&B Ministry को आदेश दिया है कि:
इसका मतलब है कि आने वाले महीनों में सोशल मीडिया के नियम पूरी तरह बदल सकते हैं।
यह सबसे बड़ा सवाल है। यदि हर पोस्ट अपलोड होने से पहले चेक होगी:
कोर्ट ने साफ कहा है कि “यह सेंसरशिप नहीं होगी। यह केवल जोखिम कम करने के लिए किया जाएगा।” लेकिन डिजिटल एक्सपर्ट्स का मानना है कि AI आधारित यह मैकेनिज्म तकनीकी रूप से संभव तो है, लेकिन चुनौतीपूर्ण भी है।
दोनों तरह की राय मौजूद है:
सपोर्ट में तर्क
विरोध में तर्क
सुप्रीम कोर्ट का आदेश डिजिटल सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। आने वाले महीनों में सरकार का ड्राफ्ट, जनता की राय और कोर्ट का अंतिम निर्णय यह तय करेगा कि भारत सोशल मीडिया पर आगे कैसे चलेगा।