पश्चिम बंगाल के कुछ काली मंदिरों में मांस और मछली चढ़ाया जाता है। यहां मन्नत पूरी होने पर भक्त जानवरों की बली देते हैं। तारापीठ में देवी को मछली और मांस का भोग लगाने की प्रथा है।
कोलकाता। मां काली की कथा बंगाल के सांस्कृतिक अस्तित्व का एक अहम हिस्सा है। कुछ लोगों के लिए वे एक उग्र देवी हैं जो राक्षसों का संहार करती हैं। वहीं, कुछ के लिए वह मां और उनके परिवार की सदस्य हैं। पश्चिम बंगाल में मां काली के सैकड़ों मंदिर हैं। इनमें से कुछ मंदिर ऐसे हैं जहां अलग तरह की प्रथाओं का पालन किया जाता है। यहां मांस और मछली चढ़ाया जाता है।
कालीघाट, कोलकाता: यह मंदिर करीब 200 साल पुराना है। इसे देश के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहां हर रोज जानवरों की बलि दी जाती है। मंदिर के पुजारियों के अनुसार भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर यहां जानवरों को बली देने के लिए लाते हैं। बाद में मांस पकाया जाता है और उसे भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। यहां देवी को शाकाहारी भोजन दिया जाता है। उनके साथियों डाकिनी और योगिनी को बलिदान से प्राप्त मांसाहारी भोजन दिया जाता है।
तारापीठ, बीरभूम: तारापीठ भी शक्तिपीठ है। यहां के पुजारियों का कहना है कि तंत्र के अनुसार देवी को मछली और मांस दोनों का भोग बलि के रूप में दिया जाता है। यहां करण सुधा या शराब चढ़ाने की भी प्रथा है। देवी को शाकाहारी भोजन और फलों का भोग भी लगाया जाता है।
दक्षिणेश्वर, कोलकाता: कोलकाता के श्री रामकृष्ण दक्षिणेश्वर मंदिर में देवी को प्रतिदिन भोग के रूप में मछली भेंट की जाती है। यहां किसी भी जानवर की बलि नहीं दी जाती है।
थंथानिया कालीबाड़ी, कोलकाता: थंथानिया काली मंदिर 300 साल पुराना है। उत्तरी कोलकाता में स्थित इस मंदिर में मछली के बिना देवी का कोई भी भोग पूरा नहीं होता है। पूर्णिमा के दिन यहां जानवरों की बलि दी जाती है और देवी को अर्पित किया जाता है। बलि का मांस मंदिर में नहीं पकाया जाता। उसे बलि देने वाले भक्त को दे दिया जाता है।
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महुआ मोइत्रा ने दिया था विवादित बयान
बता दें कि तृणमूल कांग्रेस (TMC) की महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) ने मां काली (Goddess Kali) पर विवादित बयान दिया था। मोइत्रा ने मां काली को मांस खाने वाली और मदिरापान को स्वीकार करने वाली देवी बताया था।
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