J&K की बहादुर बेटियां,एक ने व्हीलचेयर पर स्पोर्ट्स में नाम कमाया,दूसरी ने AK 47 उठाकर आतंकियों की हवा निकाल दी

एक समय था, जब आतंकवादी गतिविधियों के कारण जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में लोगों के लिए अपनी जिंदगी ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं था, लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं। जम्मू-कश्मीर की ये दो दिव्यांग बेटियां इसका सशक्त उदाहरण हैं। राष्ट्रपति ने दिव्यांग व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवसके अवसर पर इन्हें सम्मानित किया। 

नई दिल्ली. एक समय था, जब आतंकवादी गतिविधियों के कारण जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में लोगों के लिए अपनी जिंदगी ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं था, लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं। जम्मू-कश्मीर की ये दो दिव्यांग बेटियां इसका सशक्त उदाहरण हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू(President Draupadi Murmu) ने रविवार को दिव्यांग व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस(International Day of Persons with Disabilities) के अवसर पर जब इन्हें सम्मानित किया, तो एक मिसाल कायम हुई। राष्ट्रपति ने कहा कि  जम्मू और कश्मीर की बेटियां सभी बाधाओं को तोड़कर क्षेत्रों में बड़ी प्रगति कर रही हैं।


राष्ट्रपति ने रविवार को एसे ही दिव्यांगों से कुछ को सम्मानित किया। उन्होंने दिल्ली में एक समारोह के दौरान 2021 और 2022 के लिए दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए। इस पुरस्कार को पाने वालों में जम्मू-कश्मीर की पहली व्हीलचेयर वाली बास्केटबॉल खिलाड़ी इंशा बशीर भी शामिल हैं। पुरस्कार मिलने पर खुशी जाहिर करते हुए इंशा ने कहा कि विकलांगों के प्रति केंद्र सरकार की गंभीरता सराहनीय है। इंशा हाल ही में भारत में आयोजित पहली अंतर्राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने वाली कश्मीर की पहली व्हीलचेयर-बाउंड बास्केटबॉल खिलाड़ी हैं। इससे पहले, इंशा ने 2019 में अमेरिका में भारत का प्रतिनिधित्व किया था और 2019 की राष्ट्रीय चैंपियनशिप में जम्मू-कश्मीर महिला व्हीलचेयर बास्केटबॉल टीम की कप्तानी की थी।

Latest Videos

इंशा जम्मू-कश्मीर के बडगाम जिले से ताल्लुक रखती हैं और उनकी सफलता की कहानी कई लोगों को प्रेरित करती है। 15 साल की उम्र में रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण उन्हें व्हीलचेयर पर लाकर छोड़ दिया था। दुर्घटना के बाद इंशा को सर्जरी भी करवानी पड़ी, लेकिन वो फेल रही।

हादसे ने बदल दी जिंदगी: इंशा ने कहा कि उस हादसे ने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी। सर्जरी के बाद उन्हें नौ साल बिस्तर पर बिताने पड़े। प्लेट लगी होने के कारण वह बैठ नहीं पा रही थीं। खुद को चलने-फिरने की स्थिति में लाने के लिए वे लगातार कोशिश कर रही थीं, लेकिन हर बार निराश मिलती थी। इंशा ने कहा-“मैंने तो अपनी जिंदगी से हार मान ली थी, लेकिन मेरे माता-पिता ने कभी मेरे लिए कोशिशें नहीं छोड़ीं। उन्होंने हर कदम पर मेरा साथ दिया।" इंशा अब जहां एक रोल मॉडल बन गई हैं, वहीं एक लेखिका के रूप में भी तेजी से उभर रही हैं। 2020 में, इंशा ने '101 इन कन्वेंशनल स्ट्रैटेजीज़' पुस्तक का सह-लेखन किया।


जहां इंशा की कहानी युवाओं को सफलता हासिल करने के लिए बाधाओं को तोड़ने के लिए प्रेरित करती है, वहीं राजौरी की रुखसाना कौसर की कहानी महिलाओं के साहस और कौशल को दर्शाती है। जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले के शाहदरा इलाके की रहने वाली रुखसाना की बहादुरी पर अब फिल्म बन रही है. उसने सितंबर 2009 में लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के एक कमांडर को गोली मार दी और दो अन्य आतंकवादियों को भागने पर मजबूर कर दिया था। फिल्म में रुखसाना का किरदार श्रद्धा कपूर निभाएंगी। रुखसाना वर्तमान में पुलिस विभाग में सेवारत हैं। उन्होंने अपनी खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि यह वास्तव में एक बड़ा सम्मान है कि उनकी कहानी एक फिल्म के माध्यम से लाखों लोगों तक पहुंचेगी।

(तस्वीर बायें से इंशा बशीर और रुखसाना)

हुआ यूं था कि रविवार, 27 सितंबर, 2009 को तीन आतंकवादी रुखसाना के चाचा के घर में घुस गए और उन्हें उनके बड़े भाई नूर हुसैन के घर ले गए। नूर हुसैन ने दरवाजा नहीं खोला तो खिड़की तोड़कर अंदर घुसे। नूर हुसैन और उनकी पत्नी रशीदा बेगम ने रुखसाना को छुपा लिया था। जैसे ही उग्रवादियों ने मांग की कि रुखसाना को उन्हें सौंप दिया जाए, उग्रवादियों और परिवार के बीच लड़ाई छिड़ गई। इसी बीच रुखसाना अचानक कुल्हाड़ी लेकर आ गई और लश्कर कमांडर के सिर पर वार कर दिया। रुखसाना ने कमांडर की एके 47 राइफल उठाई और अन्य आतंकवादियों पर गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें एक कमांडर की मौत हो गई, जबकि अन्य दो भाग निकले। रुखसाना को आतंक के खिलाफ खड़े होने के लिए वीरता पुरस्कार से भी नवाजा गया था।

अक्टूबर 2009 में, अज्ञात बंदूकधारियों ने रुखसाना के घर पर कई गोलियां चलाईं और दो हथगोले भी फेंके जो घर से कुछ दूरी पर फट गए। रुखसाना के पूरे परिवार को लगातार अपनी जान को खतरा होने के कारण अपना पैतृक क्षेत्र छोड़ना पड़ा। रुखसाना ने कहा, 'जुनून आज भी बरकरार है। इस क्षेत्र की हर महिला में मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने का जज्बा है। 

यह भी पढ़ें
खुद जन्नत में 72 हूरों की चाहत, पर बहन-मौसी के लिए बहुत शर्मनाक सोचता था, बीकॉम स्टूडेंट रहे आतंकी की कहानी
बहुत हुआ ये तमाशा, तमिलनाडु के मंदिरों में अब ऐसा बिलकुल नहीं चलेगा, हाईकोर्ट ने लगा दिया है मोबाइल पर बैन

Read more Articles on
Share this article
click me!

Latest Videos

सीएम Rekha Gupta और Parvesh Verma ने की सुनहरी पुल ड्रेन पर चल रहे काम की समीक्षा
क्या है Hyderabad की मशहूर डिश Haleem ? Ramdan में जायका लेने पहुंच रहे लोग
Sambhal में होली के गीतों पर जमकर झूमे CO अनुज चौधरी, जमकर किया डांस
Dimple Yadav ने BJP सरकार पर साधा निशाना, बोलीं “स्वास्थ्य व्यवस्था और शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई है”
पाकिस्तान को इनविटेशन से लेकर विश्वासघात तक... PM Modi ने इंटरव्यू में किए कई चौंकाने वाले खुलासे