त्रिशूरपुरम केरल का सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध मंदिर उत्सव है। त्रिशूरपुरम केरल को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान दिलाने वाला शानदार आयोजन है। यह अप्रैल-मई के मलयालम महीने में मनाया जाने वाला पूरम त्रिशूर के थेकिंकडु मैदानम में आयोजित किया जाता है।
Thrissur Puram Festival. त्रिशूर पूरम केरल का सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध मंदिर उत्सव है। त्रिशूर पूरम केरल को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान दिलाने वाला शानदार आयोजन है। यह अप्रैल-मई के मलयालम महीने में मनाया जाने वाला पूरम त्रिशूर के थेकिंकडु मैदानम में आयोजित किया जाता है। यह असाधारण त्योहार है जिसमें सजे-धजे हाथियों के साथ चमकदार छत्रों के बीच सुमधुर संगीत के भव्य प्रदर्शन किया जाता है। यह केरल में मनाया जाने वाले प्राकृतिक त्योहार है।
पूरमों की जननी हैं त्रिशूर पुरम
त्रिशूर पूरम को सभी पूरमों की जननी माना जाता है। पूरम कोच्चि के महाराजा शाक्तन थमपुरन की मानसिक संतान थीं। इस उत्सव में जीवंत रूप से सजाए गए हाथियों की एक आकर्षक कतार सजाई जाती है और इसकी पहचान कुदामट्टम समारोह से होती है। दक्षिण भारतीय राज्य केरल अपने मंदिरों के कारण लगातार धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है और आज केरल और पर्यटन लगभग एक दूसरे के पर्यायवाची बन गए हैं।
क्या है त्रिपुर पुरम की विशेषता
त्रिशूर पुरम केरल के नगर त्रिशूर का एक सामाजिक और धार्मिक उत्सव है। यह उत्सव लगातार 8 दिनों तक चलता है। यह वार्षिक उत्सव यहां के हिन्दू समुदाय द्वारा प्रथम मलयालम महीना मेड़म यान अप्रैल में मनाया जाता है। यहां पूरम का अर्थ होता है उत्सव। त्रिशूर पुरम की शुरुआत पूर्व कोच्चि राज्य के महाराज सकथान थामपुरन ने की थी। त्रिशूर पूरम के त्योहार का इतिहास 200 साल पूराना है।
कैसे मनाते है त्रिशूर पूरम
त्रिशूर पूरम उत्सव में त्रिशूर के ही त्रिरूवामबाड़ी कृष्ण मंदिर और पारामेकावु देवी मंदिर इस विशेष उत्सव के आयोजन में बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं। वास्तव में त्रिशूर पुरम की रोचकता इन्हीं दो मंदिरों के बीच के प्रतिस्पर्धा के कारण बढ़ जाती है। ये विशेष पारंपरिक ढोल नगाड़े और ये कलाकार भी हाथियों के अलावा त्योहार के मुख्य आकर्षण होते हैं। यह केरल की पारंपरिक-सास्कृतिक सुचिका का भी प्रतीक है।
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