अदालत ने कहा कि 13 साल की पीड़िता ने निचली अदालत में अपनी गवाही में स्पष्ट तरीके से घटनाक्रम बताया था, जिसमें मार्च, 1997 में घटना के समय आरोपियों ने उसके साथ ज्यादती की थी। पीड़िता के बयान में किसी तरह का विरोधाभास नहीं था।
नई दिल्ली: नाबालिग लड़की से दुष्कर्म करने और इस अपराध में मदद करने के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने घटना के करीब दो दशक बाद दो लोगों को दोषी करार दिया है। उच्च न्यायालय ने दोनों को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि गंभीर अन्याय हुआ।
अदालत ने कहा कि 13 साल की पीड़िता ने निचली अदालत में अपनी गवाही में स्पष्ट तरीके से घटनाक्रम बताया था, जिसमें मार्च, 1997 में घटना के समय आरोपियों ने उसके साथ ज्यादती की थी। पीड़िता के बयान में किसी तरह का विरोधाभास नहीं था।
निचली अदालत ने साक्ष्यों के मूल तत्वों की अनदेखी की-
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति आई एस मेहता की पीठ ने हाल ही में सुनाये गये फैसले में कहा, ‘‘कुल मिलाकर परिस्थितियों को देखते हुए और मामले के रिकॉर्ड के अनुसार हम यह मानने के लिए विवश हैं कि निचली अदालत ने साक्ष्यों के मूल तत्वों की अनदेखी की जिसमें नाबालिग पीड़िता की गवाही को दिया जाने वाला महत्व भी शामिल है।’’
अदालत सजा अगले सप्ताह सुनाएगी-
पीठ ने कहा कि चिकित्सकीय सबूतों ने नाबालिग के स्पष्ट बयान की पुष्टि की है। मामले में सुरेंद्र को बलात्कार और आपराधिक धमकी का दोषी ठहराया गया है, वहीं रवींद्र को बलात्कार के अपराध में मदद का गुनहगार करार दिया गया है। अदालत सजा अगले सप्ताह सुनाएगी।
(यह खबर समाचार एजेंसी भाषा की है, एशियानेट हिंदी टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)