
WhatsApp Fraud Statistics India: भारत में WhatsApp स्कैम और साइबर फ्रॉड तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। हालत यह है कि हर महीने करीब 1 करोड़ भारतीय WhatsApp अकाउंट बैन किए जा रहे हैं, इसके बावजूद ऑनलाइन ठगी रुकने का नाम नहीं ले रही। इसी वजह से अब भारत सरकार ने WhatsApp से सीधे बातचीत शुरू कर दी है। सवाल यह है कि जब इतने बड़े पैमाने पर अकाउंट ब्लॉक हो रहे हैं, तो फिर स्कैम क्यों जारी हैं?
सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, WhatsApp ने अक्टूबर 2025 तक हर महीने औसतन 9.8 मिलियन भारतीय अकाउंट अपनी पॉलिसी के उल्लंघन के चलते बैन किए हैं। ये अकाउंट मुख्य रूप से स्पैम, स्कैम और साइबर फ्रॉड से जुड़े पाए गए। WhatsApp हर महीने कंप्लायंस रिपोर्ट तो जारी करता है, लेकिन बैन किए गए मोबाइल नंबरों की डिटेल साझा नहीं करता। यही बात सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता बन गई है।
स्रोत: WhatsApp मासिक कंप्लायंस रिपोर्ट, ET द्वारा उद्धृत
भारत WhatsApp का सबसे बड़ा बाजार है। अधिकारी मानते हैं कि भारतीय मोबाइल नंबरों (+91) का बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल हो रहा है। इनमें से कई नंबर फर्जी तरीके से लिए गए होते हैं या फिर एक बार इस्तेमाल के बाद छोड़ दिए जाते हैं। WhatsApp का कहना है कि वह व्यवहार आधारित संकेतों के आधार पर अकाउंट बैन करता है, लेकिन सरकार का तर्क है कि बिना नंबर की पहचान के यह तय करना मुश्किल है कि नंबर असली था या फर्जी।
एक और चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि WhatsApp से बैन किए गए कई नंबर टेलीग्राम जैसे दूसरे OTT प्लेटफॉर्म पर फिर से एक्टिव हो जाते हैं। एक बार अकाउंट बन जाने के बाद ये ऐप बिना एक्टिव सिम कार्ड के भी काम करते हैं, जिससे साइबर अपराधियों को पकड़ना बेहद मुश्किल हो जाता है।
अधिकारियों का दावा है कि भारत में होने वाले लगभग 95% डिजिटल गिरफ्तारी स्कैम और पहचान चोरी के मामले WhatsApp से जुड़े होते हैं। यही वजह है कि सरकार अब KYC, सिम ट्रेसिंग और नंबर वेरिफिकेशन को लेकर सख्त कदम उठाने की बात कर रही है।
सरकार साफ कह चुकी है कि उसे यूज़र की पर्सनल जानकारी नहीं चाहिए, बल्कि सिर्फ बैन किए गए मोबाइल नंबरों की लिस्ट चाहिए ताकि यह जांचा जा सके कि वे नंबर असली थे या फर्जी। MeitY के पूर्व अधिकारी राकेश माहेश्वरी के मुताबिक, अगर कंप्लायंस रिपोर्ट से गंभीर सुरक्षा खतरे सामने आते हैं, तो सरकार को अतिरिक्त जानकारी मांगने का अधिकार है।
WhatsApp का कहना है कि एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन के कारण वह अकाउंट-लेवल डिटेल साझा करने में तकनीकी और कानूनी दिक्कतें महसूस करता है। लेकिन सरकारी अधिकारियों की चेतावनी है कि सीमित डेटा शेयरिंग भी अगर नहीं हुई, तो साइबर फ्रॉड और बढ़ सकता है।