प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 29 मई को एक बार फिर मन की बात की। मन की बात के 89वें एपिसोड में उन्होंने संथाली भाषा के प्रोफेसर श्रीपति टुडू का जिक्र किया। आखिर कौन हैं श्रीपति टुडू, जिनकी पीएम मोदी ने तारीफ की। आइए जानते हैं।
Mann Ki Baat: पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने लंबे समय बाद 29 मई को 'मन की बात' की। पीएम के रेडियो कार्यक्रम का यह 89वां एपिसोड था। इसमें उन्होंने यूनिकॉर्न (7500 करोड़ रुपए की संपत्ति वाला स्टार्टअप) के अलावा तंजावुर के सेल्फ हेल्प ग्रुप का भी जिक्र किया। इसके अलावा पीएम मोदी ने मन की बात में झारखंड के एक बड़े इलाके में रहने वाले संथाल समुदाय की भाषा संथाली और उसके प्रोफेसर श्रीपति टुडू का भी जिक्र किया। बता दें कि पहली बार मन की बात कार्यक्रम 3 अक्टूबर, 2014 को हुआ था।
आखिर कौन हैं श्रीपति टुडू :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने रविवार को मन की बात (Mann Ki Baat) कार्यक्रम में झारखंड में रहने वाले जनजातीय समुदाय संथाल की भाषा संथाली के प्रोफेसर श्रीपति टुडू की तारीफ की। बता दें कि श्रीपति टुडू पुरुलिया की सिदो कान्हू बिरसा यूनिवर्सिटी में संथाली भाषा के प्रोफेसर हैं। उन्होंने संथाली समाज के लिए उनकी अपनी भाषा ‘ओल चिकी’ लिपि में देश के संविधान की कॉपी तैयार की है।
हर नागरिक के पास संविधान को जानने का हक :
श्रीपति टुडू के मुताबिक हमारा संविधान देश के प्रत्येक नागरिक को उसके राइट्स और ड्यूटी के बारे में बताता है। इसलिए देश के हर एक नागरिक को इसके बारे में जानना जरूरी है। यही वह है कि उन्होंने संथाली समाज के लिए उनकी ही लिपि में संविधान की कॉपी तैयार करके उन्हें भेंट की है। पीएम मोदी ने श्रीपति टुडु का जिक्र करते हुए कहा कि हमारे देश में कई तरह की भाषाओं, लिपियों और बोलियों की भरमार है। देश के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग खानपान और संस्कृति है। ये विविधता ही हमारी पहचान है और हमें एक राष्ट्र के तौर पर और अधिक मजबूत और एकजुट बनाए रखती है।
महाभारत का मंचन करने वाले हिराशी कोइके को किया याद :
पीएम मोदी ने मन की बात में अपनी हालिया जापान यात्रा का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि जापान यात्रा के दौरान उन्हें कई अद्भुत लोगों से मिलने का मौका मिला। इन्हीं में से एक हैं हिराशी कोइके। वे जापान के मशहूर आर्ट डायरेक्टर हैं और उन्होंने महाभारत को डायरेक्ट किया है। हिराशी अलग-अलग देशों की यात्रा पर जाते हैं और वहां के स्थानीय कलाकारों को एकजुट कर महाभारत का मंचन करते हैं। इस दौरान सभी कलाकार अपनी मातृभाषा में संवाद बोलते हैं।
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