मुस्लिम भाइयों ने धोती-जनेऊ पहन पिता के ब्राह्मण दोस्त का किया अंतिम संस्कार, 12वें दिन मुडवाएंगे सिर

Published : Sep 16, 2019, 01:07 PM ISTUpdated : Sep 16, 2019, 02:12 PM IST
मुस्लिम भाइयों ने धोती-जनेऊ पहन पिता के ब्राह्मण दोस्त का किया अंतिम संस्कार, 12वें दिन मुडवाएंगे सिर

सार

गुजरात में सद्भाव और सौहार्द की एक अनूठी मिसाल की तस्वीर सामने आई है। जिसको देखकर हर कोई तारीफ कर रहा है। जहां एक मुस्लिम परिवार के तीन भाइयों ने अपने पिता के ब्राह्मण दोस्त का उनके निधन के बाद हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार किया।

अहमदाबाद (गुजरात). भारत को भले ही राजनीति ने जाति, समाज और धर्म में बांट दिया हो, लेकिन आज भी देश में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करने वालों की कहीं कमी नहीं है। गुजरात में ऐसी ही एक सद्भाव और सौहार्द की एक अनूठी मिसाल की तस्वीर सामने आई है। जिसको देखकर हर कोई तारीफ कर रहा है। जहां एक मुस्लिम परिवार के तीन भाइयों ने अपने पिता के ब्राह्मण दोस्त का उनके निधन के बाद हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार किया।

मुस्लिम भाइयों ने पेश की अनूठी मिसाल
दरअसल यह अनूठी पहले की तरस्वीर गुजरात के अमरेली जिले के सावरकुंडला कस्बे की है। जहां तीन भाइयों ने बिना सोचे समझे पूरी शिद्दत से ब्राह्मण चाचा का धोती और जनेऊ पहनकर अंतिम संस्कार किया है। जानकारी के अनुसार तीनों मुस्लिम भाई अबू, नसीर और जुबैर, के पिता एक पंडित दोस्त भानुशंकर पांड्या के साथ कई सालों से साथ रहते थे। भानु को उनके धर्म से कोई परेशानी नहीं थी, वह उनके धर्म का बराबर आदर सम्मान करते थे।

धोती और जनेऊ पहनकर किया अंतिम संस्कार
तीनों मुस्लिम भाई मजदूरी का काम करते हैं। इसी दौरान भानुशंकर पांड्या का निधन हो गया। जब उनके अंतिम संस्कार करने का समय आया तो उन्होंने बिना सोचे समझे अंतिम संस्कार का सामान जुटाया और तीनों ने इसके लिए हिंदू संस्कृति के अनुसार धोती और जनेऊ भी पहने। भानुशंकर के अंतिम वक्त में पड़ोस से गंगाजल लाकर पिलाया। फिर फूल-माला डालकर अर्थी को सजाया गया। आखिर में चार कंधो पर अर्थी को रखकर शमशान पहुंचे, जहां  नसीर के बेटे अरमान ने उनको अग्नि दी।

12वें दिन मुडवाएंगे अपना सिर
तीनों भाइयों ने कहा- हम दिल से चाहते थे उनका अंतिम संस्कार उनके धर्म के अनुसार हो। हमने सोचा है हिंदू संस्कृति के अनुसर 12वें दिन बेटे अरमान का सिर मुंडवाकर उनको बाल देंगे। क्योंकि वह हमारे परिवार के एक अहम हिस्सा रहे थे। हमारे बच्चे उनको दादा कहकर बुलाते थे। हमारी महिलाएं तीज-त्यौहार के समय उनके पैर छूकर आर्शीवद लेना नहीं भूलती थीं। 

40 पहले मिले थे भानुशंकर
नसीर ने बताया हमारे पिता भीखू कुरैशी और भानु  की करीब 40 साल पहले मुलाकत हुई थी। वह हमारे चाचा की तरह थे। पिता की मौत के बाद भानु चाचा बुरी तरह टूट गए थे। ऐसा लगता था जैसे उनका भाई इस दुनिया से उनको छोड़कर चला गया है। भानु चाचा का हमारे अलावा कोई नहीं था। वह अकेले थे, लेकिन हमने उन्हें कभी इस बात का अहसास नहीं होने दिया।

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