सॉरी मम्मी-पापा...स्ट्रेस नहीं ले पा रही हूं, लेडी डॉक्टर ने इंजेक्शन लगाकर ले ली खुद की जान

जूनियर लेडी डॉक्टर के सुसाइड से भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में हंगामा मच गया है। सुसाइड करने से पहले डॉक्टर ने एक चिट्ठी लिखी जिसमें उसने कहा कि व्यक्तिगत वजहों से यह कदम उठा रही है। सवाल यह है कि लोगों के अंदर प्रेशर झेलने की ताकत कहां चली गई है।जो हर बात पर अपनी जिंदगी को खत्म करने लगे हैं।

रिलेशनशिप डेस्क. कितने अरमानों के साथ आकांक्षा माहेश्वरी को उसके माता-पिता ने पढ़ाया लिखाया होगा। बच्ची दुनिया से मुकाबला कर सके इसलिए उसे डॉक्टरी की पढ़ाई में दाखिला कराया होगा। लेकिन वो बेहद कमजोर निकली। तभी तो सुसाइड करने से पहले उसे माता-पिता के संघर्ष नहीं याद आए। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में उसने सुसाइड कर ली। जूनियर डॉक्टर आकांक्षा माहेश्वरी की जाने से पूरे परिवार में मातम फैल गया है। यहां तक उसके दोस्तों को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर उसने अपनी जिंदगी की खत्म कर लीं।

आकांक्षा माहेश्वरी जो पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट में पीजी फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट थीं, उसने हॉस्टल के कमरे में खुद को लॉक किया। इसके बाद कई इंजेक्शन खुद को लगाएं। इंजेक्शन के ओवरडोज की वजह से उसकी मौत हो गई। सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस को बॉडी के पास से एक सुसाइट नोट मिला। जिसमें उसने बताया कि व्यक्तिगत कारणों की वजह से वो खुद को खत्म कर रही है।

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प्रेशर नहीं झेलने की वजह से की सुसाइड

सुसाइड नोट में लिखा है, 'मैं इतनी मजबूत नहीं हूं कि इतना स्ट्रेस झेल लूं। सॉरी मम्मी-पापा। दोस्तों को भी सॉरी। मैं पर्सनल रीजन से खुदकुशी कर रही हैं। मैं मजबूत नहीं हूं।' शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद परिजनों को सौंप दिया गया है। पुलिस ने बताया कि  आकांक्षा माहेश्वरी ने खुद को 6 इंजेक्शन लगाए थे। सिडेटिव दवाइओं और पेन किलर इंजेक्शन के ओवरडोज से मौत हुई। बताया जा रहा है कि उसे काम का बहुत ज्यादा प्रेशर था जिसकी वजह से उसने कदम उठाया।

कहां हो रही चूक

सवाल यह है कि युवा प्रेशर को क्यों नहीं झेल पा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 15 से 19 साल के युवाओं के बीच मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है। रिलेशनशिप का टूटना, काम का प्रेशर, पारिवारिक झगड़े की वजह से लोग अवसाद में चले जाते हैं। उन्हें लगने लगता है कि जीवन में कुछ नहीं बचा है और इस तरह के कदम उठा लेते हैं। सबसे जरूरी यह है कि माता-पिता अपने बच्चों को प्रेशर झेलना सिखाएं। चाहे वो रिश्ते को लेकर हो या फिर काम को लेकर। उन्हें बताएं कि किसी के जाने से जिंदगी नहीं रुकती है। काम का प्रेशर हमेशा नहीं बना रहता है। एक दौर आता है और चला जाता है। जिंदगी खूबसूरत है और इसे जीने में यकीन रखना चाहिए। स्कूल ,कॉलेज यहां तक की ऑफिस में भी इसे लेकर जागरुकता अभियान चलाने की जरूरत है। 

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