कृष्ण और सुदामा की दोस्ती से हमें जरूर लेनी चाहिए ये 7 सीख, नहीं आएगी मित्रता में दूरी

जब-जब कृष्ण का नाम लिया जाता है तब-तब उनके साथ उनके मित्र सुदामा का भी जिक्र होता है। कृष्ण सुदामा की दोस्ती एक मिसाल है, जो हमें कई सीख देती हैं।
 

रिलेशनशिप डेस्क : एक कहावत बहुत मशहूर है कि "एक बार सुदामा ने कृष्ण से पूछा दोस्ती का असली मतलब क्या है? कृष्ण ने हंसकर कहा जहां मतलब होता है वहां दोस्ती कहां होती है।" कृष्ण और सुदामा की दोस्ती ऐसे ही हमें कई सीख देती है। आज भले ही दोस्ती के मायने बदल गए हो, इसे निभाने का तरीका बदल गया हो। लेकिन दोस्ती आज भी कृष्ण और सुदामा (Krishna and Sudama) जैसा प्यार और एक दूसरे के प्रति सम्मान मांगती है, जो हमें अपने सच्चे दोस्त को जरूर देना चाहिए। आइए आज कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami 2022) के मौके पर हम आपको बताते हैं ऐसी पांच चीजें जो आपको कृष्ण और सुदामा से जरूर सीखनी चाहिए।

कहा जाता है कि जब कृष्ण बाल अवस्था में ऋषि संदीपन के पास शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तो उनकी मुलाकात सुदामा से हुई। कृष्ण एक राज परिवार से थे और सुदामा गरीब ब्राह्मण के घर पैदा हुए थे। लेकिन दोनों की मित्रता ऐसी थी कि दुनिया भर में इसकी मिसाल दी जाती है। इनकी दोस्ती से हमें यह सीख मिलती है कि दोस्ती कभी ऊंच नीच, जात पात देखकर नहीं की जाती बल्कि दिल से की जाती है।

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कृष्ण और सुदामा जैसी दोस्ती ना किसी की हुई है और ना किसी की होगी। भगवान कृष्ण हमें यह सीख देते हैं कि जब भी आपके दोस्त को आपकी जरूरत हो, तो एक सच्चे दोस्त की तरह आपको हमेशा अपने दोस्त की मदद के लिए खड़े रहना चाहिए। चाहे आपका दोस्त आपकी मदद मांगे या नहीं मांगे। यही सच्ची दोस्ती के मायने होते हैं।

सच्चा मित्र वही होता है जो बुलंदियों पर पहुंचने के बाद भी अपने छोटे से छोटे और गरीब दोस्त को भी कभी नहीं भूलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी कुछ ऐसा ही किया, राजा होने के बाद भी उन्होंने अपने दोस्त को कभी नहीं छोड़ा।  

भगवान कृष्ण ने शिशुपाल की 100 गलतियां माफ की थी और हमेशा जिंदगी में मुस्कुराते रहने की सीख देते हैं। दोस्ती में भी हमें कई बार अपने दोस्त की गलतियों को माफ कर देना चाहिए।

महलों में रहने वाले श्री कृष्ण को जब मौका मिला तो उन्होंने अर्जुन से दोस्ती की। वह हमें सिखाते हैं कि जिंदगी में कोई इंसान या काम बड़ा या छोटा नहीं होता है। हर काम हमें पूरी इमानदारी और प्रेम के साथ करना चाहिए और उसे करने में कोई शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए।

सुदामा को आने का अनुमान श्रीकृष्ण पहले ही लग जाता था। फिर सुदामा के लाए चावल को ही वह खाते थे। इस तरह की मित्रता ही सर्वश्रेष्ठ है। जिसमें बिना कहे और बिना मांगे ही एक दूसरे की भावनाओं को समझ लिया जाता है और एक दूसरे की मदद भी की जाती है।

कृष्ण और सुदामा की दोस्ती हमें आत्मसम्मान भी सिखाती है, क्योंकि दोस्ती में एक दूसरे का सम्मान करना और खुद का आत्मसम्मान होना भी बहुत जरूरी है। सुदामा ने हमेशा अपने आत्मसम्मान को बनाए रखा और कृष्ण ने भी इसकी पूरी इज्जत की और हमेशा दोस्त का सम्मान किया।

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