लिव-इन में रहते हैं तो इन जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते पुरुष

लिव इन रिलेशनशिप का ट्रेंड अब तेजी से बढ़ता जा रहा है। बहुत से लोग यह समझते हैं कि लिव इन रिलेशनशिप में पार्टनर्स की कोई खास जिम्मेदारी नहीं होती, लेकिन ऐसा नहीं है। 

Asianet News Hindi | Published : Sep 22, 2019 8:12 AM IST / Updated: Sep 22 2019, 01:47 PM IST

लाइफस्टाइल डेस्क। आजकल मैरिज की जगह लिव इन में रहना नवजवान ज्यादा पसंद कर रहे हैं। बहुत से युवा यह समझते हैं कि लिव इन में रहने से जिम्मेदारियों का बोझ कम रहता है, जबकि शादी में बहुत जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। अगर कोई लिव इन रिलेशनशिप में रहता है तो भी उसकी जिम्मेदारियां कम नहीं होतीं। लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए जो कानून बने हैं, उनके बारे में जानने से पता चलता है कि ये जिम्मेदारियां क्या हैं। इसलिए लिव इन को बिना किसी जिम्मेदारी के मौज-मजे का जरिया नहीं मानना चाहिए। जानें इससे जुड़े कानून और जिम्मेदारियों के बारे में।

क्या कहता है कानून
सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए एक गाइडलाइन जारी किया था। इसमें कहा गया था कि दो वयस्क लोग अपनी इच्छा से पति-पत्नी की तरह बिना विवाह किए रह सकते हैं। वे चाहें तो बच्चे को भी जन्म दे सकते हैं, लेकिन लिव इन में रहने वाली महिला को वे सारे अधिकार होंगे जो विवाहित महिला को होते हैं। उन्हें उनका पार्टनर छोड़ कर नहीं भाग सकता है। अगर ऐसा होता है तो उस पर कानून सम्मत कार्रवाई होगी।

लिव इन में रहने वाली महिलाओं के क्या अधिकार हैं

- घरेलू हिंसा से संरक्षण
अगर लिव इन में रहने वाली महिला के साथ घरेलू हिंसा होती है तो शादीशुदा महिलाओं की तरह उसे इससे बचने के लिए कानूनी संरक्षण हासिल है। घरेलू हिंसा की स्थिति में वह कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है।

- संपत्ति पर अधिकार
लिव इन में रहने वाली महिला का भी विवाहित पत्नी की तरह ही पति की संपत्ति पर अधिकार होता है। अगर उसे इससे वंचित किया जाता है तो वह कानून के तहत कोर्ट से अपना अधिकार हासिल कर सकती है।

- गुजारा भत्ता पाने का अधिकार
अगर आपसी सहमति के बिना पार्टनर लिव इन में रहने वाली महिला के साथ संबंध तोड़ देता है तो उसे विवाहित पत्नी की तरह ही गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है।

- बच्चे की विरासत का अधिकार
संबंध विच्छेद की स्थिति में लिव इन में रहने वाली महिला को यह अधिकार है कि वह बच्चे को अपने साथ रखने का दावा कर सके। इसके लिए महिला कोर्ट की शरण में जा सकती है और वहां अपना दावा रख सकती है। 

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