पांडवों को कुलगुरु थे कृपाचार्य, युद्ध में दिया था कौरवों का साथ, आज भी हैं जीवित

महाभारत के अनुसार, रुद्र के एक गण ने कृपाचार्य के रूप में अवतार लिया। ये कौरव और पांडवों के कुलगुरु कृपाचार्य थे।

Asianet News Hindi | Published : Dec 1, 2019 4:02 AM IST

उज्जैन. युद्ध में इन्होंने कौरवों का साथ दिया था। कौरवों की सेना में जो अंतिम 3 लोग बचे थे, कृपाचार्य भी उन्हीं में से एक थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार, कृपाचार्य आज भी जीवित हैं। इस श्लोक से इस मान्यता को बल मिलता है...

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थात- अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम व ऋषि मार्कण्डेय- ये आठों अमर हैं।

ऐसे हुआ था कृपाचार्य का जन्म...
- कृपाचार्य के पिता का नाम शरद्वान था, वे महर्षि गौतम के पुत्र थे। महर्षि शरद्वान ने घोर तपस्या कर दिव्य अस्त्र प्राप्त किए और धनुर्विद्या में निपुणता प्राप्त की।
- यह देखकर देवराज इंद्र भी घबरा गए और उन्होंने शरद्वान की तपस्या तोडऩे के लिए जानपदी नाम की अप्सरा भेजी। इस अप्सरा को देखकर महर्षि शरद्वान का वीर्यपात हो गया।
- उनका वीर्य सरकंड़ों पर गिरा, जिससे वह दो भागों में बंट गया। उससे एक कन्या और एक बालक उत्पन्न हुआ। वही बालक कृपाचार्य बना और कन्या कृपी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
- भीष्म के पिता राजा शांतनु ने कृपाचार्य और उनकी बहन कृपी का पालन-पोषण किया था।
- युद्ध समाप्त होने के बाद जब अश्वत्थामा ने रात में धोखे से द्रौपदी के पुत्रों का वध किया था, उस समय कृतवर्मा के साथ-साथ कृपाचार्य भी बाहर पहरा दे रहे थे।
- इसके बाद इन तीनों ने ही ये बात जाकर दुर्योधन को बताई थी। दुर्योधन की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा अलग-अलग हो गए।

Share this article
click me!