Achala Ekadashi 2023: 15 मई को चतुर्ग्रही योग में करें अचला एकादशी व्रत, जानें पूजा विधि, मुहूर्त व पारणा का समय

Published : May 13, 2023, 10:49 AM ISTUpdated : May 15, 2023, 08:19 AM IST
achla ekadashi 2023

सार

Achala Ekadashi 2023: इस बार ज्येष्ठ मास की अचला एकादशी का व्रत 15 मई, सोमवार को किया जाएगा। इसे अपरा एकादशी भी कहते हैं। इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जिसके चलते ये व्रत और भी खास हो गया है। 

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अचला एकादशी (Achala Ekadashi 2023) कहते हैं। कुछ ग्रंथों में इस तिथि को अपरा भी कहा गया है। इस बार अचला एकादशी का व्रत 15 मई को किया जाएगा। इस एकादशी पर भगवान विष्णु के त्रिविक्रम रूप की पूजा करने का विधान है। इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जिसके चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है। आगे जानिए इस दिन कौन-कौन से शुभ योग बनेंगे और पूजा विधि…

जानें शुभ योग और पारणा का मुहूर्त (Achala Ekadashi 2023 Parna Muhurat)
ज्योतिषियों के अनुसार, 15 मई को मेष राशि में सूर्य, बुध, गुरु और राहु एक साथ रहेंगे, जिससे चतुर्ग्रही योग बनेगा। सूर्य और बुध के साथ होने से बुधादित्य नाम का शुभ योग बनेगा। इस दिन चंद्रमा गुरु की राशि मीन में रहेगा, जिससे ग्रहों का शुभ प्रभाव और ज्यादा बढ़ जाएगा। ग्रहों की इस शुभ स्थिति के चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ जाएगा। व्रत पारण (व्रत तोड़ने का) का शुभ मुहूर्त 16 मई, सोमवार को सुबह 06:41 से 08:13 तक रहेगा।

इस विधि से करें अचला एकादशी व्रत-पूजा (Achala Ekadashi Puja Vidhi)
- 15 मई, सोमवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। घर का किसी हिस्से की अच्छी तरह सफाई करें।
- शुभ मुहूर्त में वहां एक पटिया (बाजोट) रखें और इसके ऊपर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु के साथ-साथ देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
- भगवान को कुंकुम से तिलक लगाएं, हार पहनाएं और शुद्ध घी का दीपक स्थापित करें। भगवान को रक्षा सूत्र यानी पूजा का धागा बांधे।
- इसके बाद पंचोपचार (कुंकुम, चावल, रोली, अबीर, गुलाल) से पूजा करें। पूजा के दौरान ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करें।
- अंत में शुद्धतापूर्वक बनाया हुआ भोग अर्पित करें, इसमें तुलसी के पत्ते जरूर डालें। अंत में आरती कर प्रसाद भक्तों में बांट दें।
- दिन भर नियम पूर्वक रहें। रात को जागरण करें। व्रत के अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें और उसके बाद स्वयं भोजन करें।


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