Sankashti Chaturthi February 2024: आज करें द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत, जानें मंत्र, मुहूर्त, पूजा विधि और चंद्रोदय का समय

Sankashti Chaturthi February 2023: धर्म ग्रंथों के अनुसार चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान श्रीगणेश हैं। इसलिए हर महीने के दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश की विशेष पूजा और व्रत किया जाता है। इन चतुर्थी व्रतों के कईं विशेष नाम भी हैं।

 

Dwijpriya Sankashti Chaturthi 2024: इन दिनों हिंदू पंचांग के अंतिम महीना फाल्गुन चल रहा है। इस महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस व्रत में भगवान श्रीगणेश की पूजा का विधान है और इस दिन व्रत भी किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती हैं। इसलिए महिलाएं ये व्रत मुख्य रूप से करती हैं। शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद ही ये व्रत पूर्ण होता है। आगे जानिए इस व्रत में भगवान श्रीगणेश के किस रूप की पूजा होती है, पूजा विधि व शुभ योग आदि की जानकारी…

कैसा है भगवान श्रीगणेश का द्विजप्रिय रूप?
धर्म ग्रंथों में भगवान श्रीगणेश का एक नाम द्विजप्रिय भी बताया गया है। इस नाम और रूप का एक विशेष अर्थ है। द्विजप्रिय का अर्थ है जिस रूप में भगवान श्रीगणेश ने यज्ञोपवित यानी जनेऊ धारण की हो। प्राचीन कथाओं के अनुसार, एक बार माता पार्वती महादेव से किसी बात पर नाराज हो गईं तो उन्हें मनाने के लिए शिवजी ने यह व्रत किया था। इस व्रत के प्रभाव से देवी पार्वती वापस लौट आईं थीं।

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कब करें द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत 2024? (Dwijpriya Kab kare Sankashti Chaturthi February 2024)
पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 28 फरवरी, बुधवार को पूरे दिन रहेगी। इसलिए ये व्रत इसी दिन किया जाएगा। खास बात ये है कि इस दिन बुधवार होने से इसका महत्व और भी बढ़ जाएगा क्योंकि ये भगवान श्रीगणेश का ही प्रिय दिन माना जाता है। इस दिन वृद्धि नाम का शुभ योग भी बनेगा।

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत 2024 शुभ मुहूर्त (Dwijpriya Sankashti Chaturthi 2024 Shubh Muhurat)
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी चंद्रमा के दर्शन और पूजन के बाद ही व्रत पूर्ण होता है। 28 फरवरी, बुधवार को चन्द्रोदय 09:42 पर होने का अनुमान है। स्थान के अनुसार, चंद्रोदय के समय में अंतर आ सकता है। चंद्रमा उदय होने से कुछ देर पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा करनी चाहिए।

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि (Dwijpriya Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)
- 28 फरवरी, बुधवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और इसके बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें, जैसे- कम बोलें, किसी पर क्रोध न करें। जरूरी हो तो फलाहार करें, नहीं तो निराहार रहें।
- शाम को चंद्रोदय से पहले घर में किसी साफ स्थान पर भगवान श्रीगणेश और देवी पार्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। सबसे पहले शुद्ध घी का दीपक जलाएं। देव प्रतिमाओं पर फूल अर्पित करें और माला पहनाएं, तिलक भी लगाएं।
- इसके बाद अबीर, गुलाल, रोली, चावल, कुमकुम, वस्त्र, जनेऊ, पान, नारियल आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाएं। श्रीगणेश को दूर्वा अतिप्रिय है, ये भी जरूर चढ़ाएं। भगवान को लड्डू व मौसमी फलों का भोग लगाएं।
- इसके बाद श्रीगणेश के ये 12 नाम बोलें- ऊँ गं गणपतेय नम:, ऊँ गणाधिपाय नमः, ऊँ उमापुत्राय नमः, ऊँ विघ्ननाशनाय नमः, ऊँ विनायकाय नमः, ऊँ ईशपुत्राय नमः, ऊँ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः, ऊँ एकदन्ताय नमः, ऊँ इभवक्त्राय नमः, ऊँ मूषकवाहनाय नमः, ऊँ कुमारगुरवे नमः
- इस प्रकार पूजा करने के बाद आरती करें और प्रसाद भक्तों में बांट दें। चंद्रमा उदय होने पर जल से अर्ध्य दें और फूल अर्पित करें। इस तरह ये व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और भक्तों की हर इच्छा पूरी होती है।

गणेशजी की आरती (Ganesh ji Ki Aarti)
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा .
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी
माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा
लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥


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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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