Narasimha Jayanti 2023: नृसिंह जयंती 4 मई को, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, आरती और कथा

Narasimha Jayanti 2023: इस बार नृसिंह चतुर्दशी का पर्व 4 मई, गुरुवार को मनाया जाएगा। मान्यता के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप लेकर हिरण्यकश्यप का अंत किया था। इस दिन नृसिंह मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है।

 

उज्जैन. धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने अनेक अवतार लिए, नृसिंह अवतार भी इनमें से एक है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु ने ये अवतार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर लिया था, इसलिए हर साल इस तिथि पर नृसिंह जयंती या नृसिंह चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। (Narasimha Jayanti 2023) इस बार ये तिथि 4 मई, गुरुवार को है। इस दिन भगवान नृसिंह की पूजा विशेष रूप से की जाती है। नृसिंह मंदिरों में विशेष सजावट की जाती है। आगे जानिए नृसिंह चतुर्दशी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, आरती व कथा…

नृसिंह चतुर्दशी पूजा के शुभ मुहूर्त (Narasimha Jayanti 2023 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 3 मई, बुधवार की रात 11:49 से शुरू होकर 04 मई, गुरुवार की रात 11:44 तक रहेगी। 4 मई को चित्रा नक्षत्र दिन भर रहेगा, जिससे चर नाम का शुभ योग बनेगा। इसके अलावा सिद्धि नाम का अन्य शुभ योग भी इस दिन रहेगा। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 04:18 से 06:58 तक रहेगा। व्रत का पारणा अगले दिन 6 मई, शनिवार की सुबह 05:38 के बाद किया जा सकता है।

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इस विधि से करें व्रत और पूजा (Narasimha Jayanti Puja Vidhi)
- 4 मई की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल और चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर उपवास रखें, ज्यादा किसी न बोलें। सात्विक आचरण करते हुए दिन बिताएं।
- शाम को शुभ मुहूर्त में साफ कपड़े पहनकर घर में किसी साफ स्थान पर गंगा जल छिड़ककर उसे पवित्र करें। इसके बाद एक पटिए (बाजोट) उस स्थान पर रखकर उसके ऊपर कलश (लोटा) स्थापित करें।
- कलश पर चावल से भरी कटोरी रखें और इसके ऊपर लक्ष्मी सहित भगवान नृसिंह की प्रतिमा रखें। दोनों मूर्तियों की समान रूप से पूजा करें। अबीर, गुलाल, रोली आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें।
- इसके बाद तुलसीदल भेंट करें तथा धूपदीप दिखाएं। नीचे लिखे मंत्र के साथ भोग लगाएं और इसके बाद आरती करें।
नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्।
ददामि ते रमाकांत सर्वपापक्षयं कुरु।।
(पद्मपुराण, उत्तरखंड 170/62)
- अब भगवान नृसिंह की कथा सुनें। दूसरे दिन यानी पूर्णिमा तिथि की सुबह पारणा के शुभ मुहूर्त में ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें। इस तरह नृसिंह भगवान की पूजा से दुख और भय दूर होता है।

भगवान नृसिंह की आरती ( Lord Narasimha Aarti)
ॐ जय नरसिंह हरे,
प्रभु जय नरसिंह हरे।
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे,
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे,
जनका ताप हरे ॥
॥ ॐ जय नरसिंह हरे ॥
तुम हो दिन दयाला,
भक्तन हितकारी,
प्रभु भक्तन हितकारी ।
अद्भुत रूप बनाकर,
अद्भुत रूप बनाकर,
प्रकटे भय हारी ॥
॥ ॐ जय नरसिंह हरे ॥
सबके ह्रदय विदारण,
दुस्यु जियो मारी,
प्रभु दुस्यु जियो मारी ।
दास जान आपनायो,
दास जान आपनायो,
जनपर कृपा करी ॥
॥ ॐ जय नरसिंह हरे ॥
ब्रह्मा करत आरती,
माला पहिनावे,
प्रभु माला पहिनावे ।
शिवजी जय जय कहकर,
पुष्पन बरसावे ॥
॥ ॐ जय नरसिंह हरे ॥

नृसिंह जयंती की कथा (Narasimha Jayanti Katha)
- धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दिति के 2 पुत्र थे, इनके नाम थे हिरणायक्ष और हिरण्यकश्यप। ये दोनों महापराक्रमी दैत्य थे। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरणयाक्ष का वध कर दिया, जिससे हिरण्यकश्यप बहुत क्रोधित हुआ। 
- हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया और वरदान मांगा कि “न कोई घर में मुझे मार सके न बाहर, न अस्त्र से मेरा वध होगा और न शस्त्र से, न दिन में मेरी मृत्यु हो न रात में, न मनुष्य द्वारा में मारा जाऊं न पशुओं से, न आकाश में और न पृथ्वी पर।”
- ब्रह्माजी से ऐसा वरदान प्राप्त हिरण्यकश्यप सभी लोगों पर अत्याचार करने लगा। उसने आदेश किया कि तीनों लोकों में कोई भी भगवान की पूजा नहीं करेगा। वह भगवान को भक्तों को सताने लगा।
- हिरण्यकश्यप का पुत्र भक्त प्रह्लाद स्वयं भगवान विष्णु की भक्त था। जब ये बात हिरण्यकश्यप को बता चली तो पहले तो उसने अपने पुत्र को समझाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन प्रह्लाद नहीं माना।
- तब हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने के लिए कई प्रयास किए लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। तब एक दिन प्रह्लाद की पुकार सुनकर भगवान विष्णु खंबा फाड़कर नृसिंह रूप में प्रकट हुए।
- भगवान नृसिंह ने अपने तेज नाखुनों से हिरण्यकश्यप का पेट फाड़कर उसका वध कर दिया। जो व्यक्ति नृसिंह चतुर्दशी पर ये कथा सुनता है, उसके सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।



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