
Devshayani Ekadashi Katha In Hindi: आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन से अगले 4 महीनों के लिए भगवान विष्णु योगनिंद्रा यानी शयन करने पाताल लोक चले जाते हैं। इस बार देवशयनी एकादशी का व्रत 6 जुलाई, रविवार को किया जाएगा। इस व्रत की कथा सुने बिने इसका पूर फल नहीं मिलता। आगे पढ़ें देवशयनी एकादशी व्रत की पूरा कथा…
पुराणों के अनुसार, ‘सतयुग में मांधाता नाम के एक चक्रवर्ती राज थे। वे प्रजा को अपनी संतान मानकर उनकी सेवा करते थे। एक बार उनके राज्य में भंयकर अकाल पड़ा। लगातार तीन साल तक वर्षा न होने के कारण चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। न तो मनुष्यों के पास खाने के अनाज बचा न पशु-पक्षियों के लिए चारा।
उस समय यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि में कमी हो गई। प्रजा अपनी समस्या लेकर राजा मांधाता के पास गई। राजा भी इस स्थिति से काफी दुखी थे। समस्या का समाधान पाने के लिए वे जंगल की ओर चल दिए। जंगल में चलते हुए राजा मांधाता ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे।
ऋषि ने राजा के आने कारण पूछा तो उन्होंने पूरी बात सच-सच बता दी और इस समस्या के समाधान के बारे में पूछा। तब अंगिरा ऋषि ने बताया कि ‘तुम्हारे राज्य में एक शुद्र तपस्या कर रहा है जिसका उसे अधिकार नहीं है। इसी वजह से तुम्हारे राज्य में अकाल की स्थिति बनी है। उसे मारने से ही इस समस्या का समाधान होगा।
लेकिन राजा मांधाता एक निरअपराधी शूद्र को मारने को तैयार न हुए तो अंगिरा ऋषि ने कहा कि ‘यदि तुम आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करो तो भी तुम्हारी समस्या दूर हो सकती है।’ ऋषि की बात सुनकर राजा मांधाता अपने राज्य में लौट आए और समय आने पर पूरी प्रजा के साथ ये व्रत किया। इस व्रत के फलस्वरूप उनके राज्य में मूसलधार बारिश हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, जो भी व्यक्ति देवशयनी एकादशी की इस कथा को सुनता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।