Vishwakarma Puja 2025: 16 या 17 सितंबर, क्या है विश्वकर्मा पूजा की सही डेट? जानें मुहूर्त और पूजा विधि

Published : Sep 15, 2025, 09:42 AM IST
Vishwakarma Puja 2025

सार

Vishwakarma Puja 2025: हर साल आश्विन मास में विश्वकर्मा पूजा की जाती है। भगवान विश्वकर्मा को देवशिल्पी कहा जाता है। मान्यता है कि ब्रह्माजी के कहने पर पूरी सृष्टि की रचना भगवान विश्वकर्मा ने ही की है।

Kab Hai Vishwakarma Puja 2025: हिंदू धर्म में अनेक देवी-देवताओं की मान्यता है, भगवान विश्वकर्मा भी इनमें से एक है। हर साल जब सूर्य सिंह से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करता है तो भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पी कहा जाता है। विश्वकर्मा ने ही रावण की लंका और भगवान श्रीकृष्ण की द्वारिका नगरी का निर्माण भी किया था। आगे जानें इस बार कब करें विश्वकर्मा पूजा, शुभ मुहूर्त सहित पूरी डिटेल…

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कब करें विश्वकर्मा पूजा 2025?

पंचांग के अनुसार, इस बार सूर्य 17 सितंबर, बुधवार को सिंह से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करेगा। इसलिए इसी दिन विश्वकर्मा पूजा का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन परिघ, शिव, गद और मातंग नाम के 4 शुभ योग दिन भर रहेंगे, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है।

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विश्वकर्मा पूजा 2025 के शुभ मुहूर्त

सुबह 06:17 से 07:48 तक
सुबह 07:48 से 09:19 तक
सुबह 10:50 से दोपहर 12:21 तक
दोपहर 03:23 से शाम 04:53 तक
शाम 04:53 से 06:24 तक

इस विधि से करें भगवान विश्वकर्मा की पूजा

- 17 सितंबर, बुधवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल, चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- शुभ मुहूर्त से पहले घर का कोई हिस्सा पूजा के लिए साफ करें। इसे गंगाजल या गोमूत्र छिड़कर पवित्र करें।
- इस स्थान पर एक लकड़ी के बाजोट यानी पटिए पर भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
- सबसे पहले भगवान विश्वकर्मा के चित्र पर तिलक लगाएं, दीपक जलाएं और फूल माला अर्पित करें।
- इसके बाद अबीर, गुलाल, रोली, चावल अन्य चीजें एक करके चढ़ाते जाएं। अंत में भोग भी लगाएं।
- इसके बाद अपने औजारों और मशीनों की भी पूजा करें। इन पर भी तिलक लगाएं और मौली बांधें।
- अंत में विधि-विधान से भगवान विश्वकर्मा की आरती करें और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना भी करें।

ये है भगवान विश्वकर्मा की आरती

जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के करता,
रक्षक स्तुति धर्मा ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
आदि सृष्टि मे विधि को,
श्रुति उपदेश दिया ।
जीव मात्र का जग में,
ज्ञान विकास किया ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
ऋषि अंगीरा तप से,
शांति नहीं पाई ।
ध्यान किया जब प्रभु का,
सकल सिद्धि आई ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
रोग ग्रस्त राजा ने,
जब आश्रय लीना ।
संकट मोचन बनकर,
दूर दुःखा कीना ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
जब रथकार दंपति,
तुम्हारी टेर करी ।
सुनकर दीन प्रार्थना,
विपत सगरी हरी ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
एकानन चतुरानन,
पंचानन राजे।
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज,
सकल रूप साजे ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
ध्यान धरे तब पद का,
सकल सिद्धि आवे ।
मन द्विविधा मिट जावे,
अटल शक्ति पावे ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु,
जय श्री विश्वकर्मा ।
श्री विश्वकर्मा की आरती,
जो कोई गावे ।
भजत गजानांद स्वामी,
सुख संपति पावे ॥
जय श्री विश्वकर्मा प्रभु
जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के करता,
रक्षक स्तुति धर्मा ॥


Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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