धर्मराज युधिष्ठिर को क्यों देखना पड़ा था नरक, जानें किस पाप की मिली थी सजा?

Mahabharata: महाभारत में पांडवों के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर को धर्मराज कहा गया है। युधिष्ठिर साक्षात यमराज के अवतार थे। वे अकेले ही सशरीर स्वर्ग तक गए थे, लेकिन उन्हें कुछ देर के लिए नरक भी देखना पड़ा।

 

Interesting facts about Mahabharata: महाभारत में पांडवों के स्वर्ग जाने की कथा भी विस्तार पूर्वक बताई गई है। उसके अनुसार, स्वर्ग जाने के रास्ते में ही द्रौपदी, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की मृत्यु हो गई, सिर्फ युधिष्ठिर अकेले ही सशरीर स्वर्ग तक पहुंचे थे। यहां उन्हें कुछ देर के लिए नरक भी देखना पड़ा। धर्मात्मा होने के बाद भी युधिष्ठिर के साथ ऐसा क्यों हुआ, इसके बारे में भी महाभारत में बताया गया है। जानें आखिर क्यों युधिष्ठिर को नरक देखना पड़ा…

जब युधिष्ठिर पहुंचें स्वर्ग

पांडव जब स्वर्ग जाने के लिए निकले तो रास्ते में ही द्रौपदी, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की मृत्यु हो गई। अकेले युधिष्ठिर ही सशरीर स्वर्ग आ पाए। यहां उन्होंने देखा कि दुर्योधन सिंहासन पर बैठा है। युधिष्ठिर ने वहां बैठे देवताओं से कहा कि ‘मेरे भाई जिस लोक में गए हैं, मैं भी वहीं जाना चाहता हूं। मुझे स्वर्ग की इच्छा नहीं है।’ तब देवताओं ने उन्हें एक देवदूत के साथ जाने को कहा।

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जब युधिष्ठिर ने देखा नरक का नजारा

देवदूत युधिष्ठिर को अंधकार वाले स्थान पर ले गया, जहां मुर्दे दिखाई दे रहे थे। लोहे की चोंच वाले कौए और गिद्ध मंडरा रहे थे। वह असिपत्र नाम का नरक था। वहां बहुत भयंकर दुर्गंध आ रही थी। तभी युधिष्ठिर को वहां दुखी लोगों की आवाज सुनाई दी। युधिष्ठिर ने जब उनसे पूछा ‘आप कौन हैं?’ तो उन्होंने कर्ण, भीम, अर्जुन, नुकल, सहदेव व द्रौपदी के रूप में अपना परिचय दिया। जब युधिष्ठिर को पता चला कि उनके भाई नरक में है तो उन्होंने भी वहीं रुकने का निर्णय लया।

इस कारण युधिष्ठिर को देखना पड़ा नरक

देवदूत ने यह बात जाकर देवराज इंद्र को बताई। कुछ देर में देवराज इंद्र भी वहां देवताओं के साथ आ गए। उन्होंने युधिष्ठिर को बताया कि ‘तुमने अश्वत्थामा के मरने की बात कहकर छल से द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का विश्वास दिलाया था। इसी के कारण तुम्हें कुछ देर के लिए नरक के दर्शन करने पड़े। अब तुम मेरे साथ स्वर्ग चलो। तुम्हारे भाई पहले ही वहां पहुंच चुके हैं।’

जब युधिष्ठिर ने छोड़ा मानव शरीर

देवराज इंद्र के कहने पर युधिष्ठिर ने देवनदी गंगा में स्नान किया। ऐसा करते ही उनका मानव शरीर नष्ट हो गया और उन्होंने एक दिव्य शरीर धारण कर लिया। स्वर्ग जाकर युधिष्ठिर ने देखा कि उनके चारों भाई, कर्ण, भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रौपदी आदि सभी वहां पहले से बैठे थे। युधिष्ठिर ने वहां भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन किए। अर्जुन उनकी सेवा कर रहे थे। अपने भाइयों और सगे-संबंधियों को देखकर युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए।


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इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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