महाभारत में कौन थे यमराज के अवतार?, दुर्योधन के पैदा होते ही कहा ‘अब होगा विनाश’

Interesting facts about Mahabharata: महाभारत के अनेक पात्र देवी-देवताओं के अवतार थे। ऐसे ही एक पात्र थे महात्मा विदुर। बहुत कम लोगों को पता होगा कि महात्मा विदुर यमराज के अवतार थे। इससे संबंधित कथा भी महाभारत में मिलती है।

 

Manish Meharele | Published : Sep 29, 2024 3:59 AM IST

Interesting facts about Mahatma Vidur: महाभारत में महात्मा विदुर भी प्रमुख पात्रों में से एक है। ये महाराज धृतराष्ट्र के छोटे भाई के साथ-साथ हस्तिनापुर के महामंत्री भी थे। ये हमेशा राजा धृतराष्ट्र के सही सलाह देते थे। इनका पांडव पुत्रों से अधिक लगाव था क्योंकि हमेशा धर्म के अनुकूल रहते थे। इसी वजह से दुर्योधन हमेशा इनका अपमान करता रहता था। इनकी मृत्यु भी बहुत अजीब तरीके से हुई। आगे जानिए महात्मा विदुर से जुड़ी रोचक बातें…

यमराज को क्यों लेना पड़ा विदुर के रूप में जन्म?
महाभारत के अनुसार, प्राचीन समय में माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे। एक बार बिना कोई अपराध किए भी राजा ने अनजाने में उन्हें दंड दे दिया। ऋषि ने राजा से तो कुछ नहीं कहा और वे सीधे यमराज के पास चले गए। वहां उन्होंने यमराज से पूछा कि ‘मुझे मेरे किस अपराध का दंड मिला है।’
तब यमराज ने उन्हें बताया कि ‘जब आप छोटे थे तो आपने एक कीड़े की पूंछ में सुई चुभोई थी। आपको उसी का दंड मिला है।’
तब ऋषि माण्डव्य ने कहा कि ‘तुमने मुझे छोटे अपराध का बड़ा दंड दिया है, इसलिए तुम्हें धरती पर दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा।’
इसी श्राप के कारण यमराज को धरती पर महात्मा विदुर के रूप में जन्म लेना पड़ा।

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दुर्योधन के पैदा होती ही की सर्वनाश की चेतावनी
महाभारत के अनुसार, जन्म लेते ही दुर्योधन गधे की तरह रोने लगा। उसी समय गिद्ध, गीदड़ और कौए चिल्लाने लगे। आंधी चलने लगी। ये देख धृतराष्ट्र आदि सभी भयभीत हो गए। इतने सारे अपशुकन होते देख महात्मा विदुर ने कहा कि ‘ये अपशकुन सर्वनाश के बारे में संकेत कर रहे हैं, इसलिए राजा धृतराष्ट्र आप अपने इस पुत्र का त्याग कर दीजिए।’ लेकिन धृतराष्ट्र ने ऐसा नहीं किया।

पांडवों की बचाई जान
जब दुर्योधन ने लाक्षागृह में पांडवों को जलाकर मारने का षड़यंत्र रचा तो महात्मा विदुर उसके बारे में पहले से जान गए और उन्होंने बातों ही बातों में संकेत से युधिष्ठिर को समझा दिया। महात्मा विदुर द्वारा भेजे गए सेवक ने ही लाक्षागृह के नीचे एक सुंरग बनाई, जिसमें से निकलकर पांडवों ने अपनी जान बचाई।

अजीब तरीके से हुई मृत्यु
युद्ध समाप्त होने के बाद काफी समय तक महात्मा विदुर हस्तिनापुर में ही रहे। बाद में जब धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती ने वन में जीवन बिताने का निश्चय किया तो विदुर भी उनके साथ ही वन में चले गए। यहां उन्होंने घोर तपस्या की। तब एक दिन पांडव उनसे मिलने वन में गए तो विदुर उन्हें देखकर बिना मिले ही जाने लगे। युधिष्ठिर ने उन्हें देख लिया और उनके पीछे भागे। थोड़ी दूर जाकर विदुर एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए। उसी समय विदुरजी के शरीर से प्राण निकले और युधिष्ठिर में समा गए। ये बात बाद में युधिष्ठिर ने सभी को बताई।

 

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इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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