
Interesting facts about Jagannath Temple: इस बार भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा 27 जून को निकाली जा रही है। भगवान जगन्नाथ, अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अलग-अलग रथों में सवार होकर गुंडिचा मंदिर जाएंगे, जिसे उनकी मौसी का घर भी कहा जाता है। यहां भगवान 8 दिनों तक विश्राम करेंगे और 9वें दिन पुन: अपने मंदिर में लौट जाएंगे। इस दौरान अनेक परंपराओं का पालन किया जाएगा। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की तरह ही उनके मंदिर की रसोई भी सैकड़ों सालों से आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। यहां पारंपरिक तरीके से भगवान जगन्नाथ के लिए भोग तैयार किया जाता है। इसलिए इस भोग को महाप्रसाद कहा जाता है। आगे जानिए जगन्नाथ मंदिर की रसोई से जुड़ी 5 रोचक बातें…
जगन्नाथ मंदिर की रसोई को भारत की सबसे बड़े रसोई घर के रूप में जाना जाता है। ये रसोई घर लगभग एक एकड़ में फैला हुआ है। जिस स्थान पर खाना पकाया जाता है, वह 150 फीट लंबा, 100 फीट चौड़ा और लगभग 20 फीट ऊंचा है। इसे ही मुख्य रसोई घर कहते हैं। इस रसोई घर में 32 कमरे हैं, जो अलग-अलग कामों के लिए उपयोग में लिए जाते हैं।
जगन्नाथ मंदिर की रसोई में चूल्हों की संख्या सुनकर आपको काफी आश्चर्य होगा क्योंकि यहां 10 या 20 नहीं बल्कि पूरे 240 मिट्टी के चूल्हे हैं। इस विशाल रसोई में भगवान को चढ़ाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए लगभग 500 रसोइए तथा 300 सहयोगी काम करते हैं। यह रसोई मंदिर के दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है।
ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर की रसोई में जो भी भोग तैयार किया जाता है उसका निर्माण माता लक्ष्मी की देखरेख में ही होता है। हिंदू धर्म पुस्तकों के अनुसार ही ये भोग तैयार किया जाता है जिसमें किसी भी रूप में प्याज व लहसुन का भी प्रयोग नहीं किया जाता।
जगन्नाथ मंदिर के रसोई घर के पास ही दो कुएं हैं जिन्हें गंगा व यमुना कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ के भोग के लिए केवल इनसे निकले पानी का उपयोग किया जाता है। ऐसा कहते हैं कि इन कुओं से निकला पानी बहुत ही पवित्र और गंगाजल के समान है।
जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है, इससे जुड़ी एक कथा है, उसके अनुसार एक बार महाप्रभु वल्लभाचार्यजी एकादशी के दिन भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आए, यहां उन्हें किसी ने उन्हें प्रसाद दे दिया। एकादशी के कारण महाप्रभु उस प्रसाद को खा नहीं सकते थे, इस कारण वे प्रसाद को हाथ में रात भर भगवान की भक्ति करते रहे और अगले दिन उसे खाया। तभी से इस प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाने लगा।
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।