
Bhimashankar Jyotirlinga Story: सावन के पवित्र महीने में भगवान शिव की पूजा पूरी श्रद्धा के साथ की जाती है। इस दौरान मंदिरों में जबरदस्त भीड़ देखने को मिलती है। भक्त पूरी श्रद्धा के साथ महादेव की पूजा-अर्चना करने में जुट जाते हैं। कई भक्त भगवान शिव से जुड़े 12 ज्योतिर्लिंगों का लगातार जाप करते हैं। वैसे तो भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग मौजूद हैं। उन्हीं में से एक भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मौजूद है। जो कि सह्याद्री पर्वत के घाट में पवित्र भीमा नदी के तट पर मौजूद है। यहां दर्शन करने से भक्तों के सारे पाप मिट जाते हैं। ये ज्योतिर्लिंग घने जंगलों और खूबसूरत नदियों से घिरा हुआ है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कैसे स्थापना हुई है, आइए जानते हैं उसके बारे में यहां।
शिवपुराण के मुताबिक भीमासुर रावण के भाई कुंभकर्ण का बेटा था, जो कि बहुत ही ताकतवर और क्रूर था। वह हर जगह जाकर तबाही मचाने का काम करता था। देवतागण भी उससे काफी परेशान रहते थे। एक बार भीमासुर ने भगवान शिव के भक्त सुदक्षिण और उनकी पत्नी विराणी को कैद कर लिया। भीमासुर की कैद में रहने के बाद भी सुदक्षिण और उनकी पत्नी विराणी भगवान शिव की पूजा करते रहते थे। ये बात भीमासुर को बुरी लगने लगी। वो मन ही मन सोचने लगा कि वो भगवान शिव की पूजा क्यों कर रहे हैं? जबकि मैं खुद सबसे ताकतवर हूं।
भीमासुर ने गुस्से में आकर एक बार पूछ लिया कि आखिर वो किस की पूजा करते हैं? सुदक्षिण ने डरते हुए कहा कि हम भगवान शिव की पूजा कर रहे हैं। वहीं, दुनिया के पालनकर्ता और सर्वश्रेष्ठ हैं। ये सुनते ही भीमासुर को गुस्सा आ गया। उसने शिवलिंग को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन उसमें से एक ज्योति निकली। वो खुद भगवान शिव थे। उन्होंने हाथ में त्रिशूल लिया हुआ था। युद्ध में भीमासुर की मौत हो गई। तब भगवान शिव ने सुदक्षिण और विराणी की भक्ति से खुश होकर कहा कि वो हमेशा के लिए ज्योतिर्लिंग के तौर पर यहां रहेंगे। जो भी कोई मेरी यहां पर आकर सच्चे मन से पूजा करेगा, उसकी सारी इच्छाएं पूरी होगी। तभी से यह जगह भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से पहचाने जाने लगी।