
Parshuram Jayanti 2025: हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। परशुराम भगवान विष्णु के अवतार हैं। परशुराम को भगवान विष्णु का क्रोधी अवतार कहा जाता है क्योंकि ब्राह्मण होकर भी उनमें क्षत्रियों वाले गुण थे। इस बार परशुराम जन्मोत्सव 30 अप्रैल, बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन देश भर में ब्राह्मण समाज के लोग जुलूस निकालते हैं और भगवान परशुराम की पूजा करते हैं। परशुराम से जुड़ी ऐसी अनेक बातें हैं जो कम ही लोग जानते हैं। परशुराम जन्मोत्सव के मौके पर जानें इनसे जुड़ी रोचक बातें…
भगवान परशुराम के बारे में कहा जाता है कि वे अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं यानी धर्म ग्रंथों में जिन 8 अमर महापुरुषों के बारे में बताया गया है, परशुराम भी इनमें से एक है। ऐसी मान्यता है कि परशुराम आज भी किसी गुप्त स्थान पर रहकर तपस्या कर रहे हैं, कलयुग के अंत में जब भगवान कल्कि आएंगे, उसी समय परशुराम भी दर्शन देंगे।
भगवान परशुराम का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ लेकिन इसके बाद भी उनमें क्षत्रियों वाले गुण क्यों हैं? इससे जुड़ी एक कथा हैं, उसके अनुसार, ‘परशुराम की दादी का नाम सत्यवती था, जो एक राजा की पुत्री थी। उन्होंने अपने लिए ब्राह्मण गुण वाले पुत्र और अपनी माता के लिए क्षत्रिय गुण वाले पुत्र की कामना की थी। तब उनके पति ऋषि ऋचिक ने उन्हें 2 फल देते हुए इसमें से एक उन्हें स्वयं खाने को दिया था और दूसरा उनकी माता को देने को कहा था। लेकिन गलती से दोनों फल बदल गए, जिससे उनकी माता की संतान विश्वामित्र क्षत्रिय होकर भी ब्रहर्षि बन गए और उनके पोते परशुराम ने क्षत्रियों वाले गुण आ गए।
महाभारत के अनुसार, एक बार परशुराम का अपने ही शिष्य भीष्म से भयंकर युद्ध हुआ। ये युद्ध कईं दिनों तक चलता रहा, लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला। तब भीष्म ने एक दिव्यास्त्र का प्रयोग करना चाहा, उस समय देवताओं ने आकर उन्हें रोक दिया और परशुराम को भी युद्ध करने के मना कर दिया। इस तरह परशुराम अपने ही शिष्य को पराजित नहीं कर पाए।
भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि थे। एक बार महिष्मती का राजा कार्तवीर्य अर्जुन उनके आश्रम के पास से गुजर था। ऋषि जमदग्नि की कामधेनु गाय देखकर उसके मन में लालच आ गया और लेकिन ऋषि जमजग्नि की तप शक्ति के आगे उसकी एक न चली बाद में परशुराम ने कार्तवीर्य अर्जुन का वध कर दिया। मौका पाकर कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों ने ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया। इस बात से क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने 21 बार पूरी धरती से क्षत्रियों का नाश कर दिया।
महाभारत में भी कईं बार भगवान परशुराम का वर्णन मिलता है। भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण इन्हीं के शिष्य थे। भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र भी परशुराम ने ही दिया था। जब श्रीकृष्ण शांति प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर गए तो उस सभा में भी परशुराम उपस्थित थे।
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस में लिखा है कि सीता स्वयंकर के दौरान जब श्रीराम ने शिव धनुष तोड़ दिया तो परशुराम वहां आए तो श्रीराम और लक्ष्मण से उनका विवाद हुआ जबकि वाल्मीकि रामायण ने लिखा है कि श्रीराम और सीता का विवाह होने के बाद जब बारात पुन: अयोध्या जा रही थी तभी मार्ग में परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम को विष्णु धनुष देकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने को कहा। श्रीराम ने आसानी से उस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा दी, ये देखकर परशुराम वहां से चले गए।
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