पारसियों में कैसे होता है अंतिम संस्कार, क्या सच में गिद्धों को खिलाते हैं शव?

Published : Oct 10, 2024, 04:29 PM IST
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सार

ratan tata funeral: देश के जाने-माने उद्योगपति और टाटा कंपनी के पूर्व चेयरमैन का 9 अक्टूबर को निधन हो गया। वे पारसी समुदाय से संबंध रखते थे। पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार के कईं विकल्प हैं, जिनमें से दखमा भी एक है। 

How is funeral rites performed among Parsis: टाटा कंपनी के पूर्व चैयरमैन रतन टाटा का 9 अक्टूबर, बुधवार को निधन हो गया। वे देश के जाने-माने उद्योपति थे। साल 1991 से 2021 तक वे टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहे। इस दौरान उन्होंने अपने ग्रुप को नई ऊंचाई दी और देश-दुनिया तक इसका नाम पहुंचाया। रतन टाटा पारसी समुदाय से संबंध रखते थे। पारसी धर्म में अंतिम संस्कार के 3 विकल्प हैं, जिनमें से दखमा भी एक है। दखमा के बारे में बहुत कम ही लोगों को जानकारी है। जानें पारसी समुदाय में कैसे होता है अंतिम संस्कार

क्या होता है अंतिम संस्कार से पहले?
पारसी कम्युनिटी में जब भी किसी की मृत्यु होती है तो उनके रीति रिवाजों के अनुसार सबसे पहले गेह-सारनू पढ़ा जाता है। इसके बाद शव के मुंह पर एक कपड़े का टुकड़ा रख कर अहनावेति का पहला पूरा अध्याय पढ़ा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से मरने वाली की आत्मा को शांति मिलती है। इसके लिए परिवार वालों की मर्जी के अनुसार 3 में से किसी एक परंपरा के अंतर्गत शव का अंतिम संस्कार किया जाता है।

कौन-सी हैं अंतिम संस्कार की 3 परंपरा?
पारसी समुदाय में मृत्यु के बाद किसी भी अंतिम संस्कार 3 तरह से किया जाता है। 3 में से कौन सी परंपरा निभानी है ये मृतक के परिजन तय करते हैं। हिंदुओं की तरह पारसियों में शव का दाह संस्कार की परंपरा है। रतन टाटा का अंतिम संस्कार इसी परंपरा के अंतर्गत किया जाएगा। इसके अलावा शव को दफनाकर भी अंतिम संस्कार किया जा सकता है।

तीसरी परंपरा सबसे अजीब
पारसियों में अंतिम संस्कार की तीसरी परंपरा को दखमा कहा जाता है। इस परंपरा में शव को एक बड़े कुएं नुमा स्थान पर खुला छोड़ दिया जाता है। इस कुएं को टावर ऑफ साइलेंस कहते हैं। इस कुएं में गिद्ध व अन्य मांसाहारी पक्षी उस शव का मांस खा लेते हैं। ये पारसियों में अंतिम संस्कार की प्राचीन परंपरा है। हालांकि समय के साथ इस परंपरा में कमी आती जा रही है क्योंकि गिद्ध की आबादी में पिछले कुछ समय से तेजी से गिरावट आई है। साथ ही नई पीढ़ी के लोग भी अब इस परंपरा को अपनाने से कतराने लगे हैं।

 

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