Sankashti Chaturthi July 2023: 6 जुलाई को पंचक में किया जाएगा संकष्टी चतुर्थी व्रत, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व योग

Sankashti Chaturthi July 2023: इस बार सावन मास की संकष्टी चतुर्थी का व्रत 6 जून, गुरुवार को किया जाएगा। सावन मास की संकष्टी चतुर्थी होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। इस दिन कई शुभ योग भी बनेंगे।

 

Manish Meharele | Published : Jul 4, 2023 11:30 AM IST / Updated: Jul 06 2023, 09:31 AM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी व्रत किया जाता है। इस व्रत में भगवान श्रीगणेश की पूजा विशेष रूप से की जातीहै। इस बार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 6 जुलाई, गुरुवार को है। श्रावण मास की चतुर्थी तिथि होने से इसका खास महत्व है। कई शुभ योग भी इस दिन बनेंगे। इस दिन पंचक का संयोग भी बन राह है। आगे जानिए संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि, शुभ योग व अन्य खास बातें…

दोपहर से शुरू होगा पंचक
पंचांग के अनुसार, 6 जुलाई की दोपहर लगभग 01.38 मिनट से शुरू होगा जो 10 जुलाई, सोमवार की शाम 06.59 तक रहेगा। हालांकि पंचक का संकष्टी चतुर्थी व्रत पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं रहेगा।

ये शुभ योग बनेंगे संकष्टी चतुर्थी पर (Sankashti Chaturthi July 2023 Shubh Yog)
पंचागं के अनुसार, श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 06 जुलाई, गुरुवार की सुबह 06:30 से 07 जुलाई तड़के 03:12 तक रहेगी। चूंकि चतुर्थी तिथि का चंद्रोदय इसी दिन होगा, इसलिए ये व्रत 6 जुलाई को ही किया जाएगा। इस दिन धनिष्ठा नक्षत्र होने से श्रीवत्स नाम का योग बनेगा। साथ ही इस दिन प्रीति नाम का शुभ योग भी बनेगा। इन शुभ योगों के चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।

इस विधि से करें संकष्टी चतुर्थी की पूजा (Sankashti Chaturthi July 2023 Puja Vidhi)
1. 6 जुलाई, गुरुवार की सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें।
2. दिन भर सात्विक आचरण करें। यानी ज्यादा न बोलें। किसी पर गुस्सा न करें। एक समय फलाहार भी कर सकते हैं।
3. शाम को चंद्रमा उदय होने से पहले एक साफ स्थान पर चौकी स्थापित करें। इस पर श्रीगणेश की प्रतिमा या चित्र रखें।
4. सबसे पहले श्रीगणेश को कुंकुम से तिलक लगाएं। फूलों का हार पहनाएं और शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
5. इसके बाद श्रीगणेशाय नम: बोलते हुए रोली, अबीर, गुलाल, दूर्वा, फूल, चावल एक-एक करके चढ़ाते रहें।
6. फिर अपनी इच्छा अनुसार भगवान श्रीगणेश को भोग लगाएं। अंत में आरती करें और प्रसाद बांट दें।
7. इसके बाद जब चंद्रमा उदय हो तो जल से अर्घ्य देकर इनकी भी पूजा करें। इसके बाद ही स्वयं भोजन करें।

गणेशजी की आरती (Ganesh ji Ki Aarti)
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा .
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी
माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा
लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥



 

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