अघोरियों का रहस्यमयी संसार, क्या है शवों से संबंध का सच?

Published : Nov 11, 2024, 12:58 PM ISTUpdated : Nov 11, 2024, 12:59 PM IST
Aghori

सार

अघोरी, शिव के उपासक, शवों के साथ संबंध बनाकर शक्ति प्राप्ति का दावा करते हैं। श्मशान में रहने वाले ये साधु, विचित्र क्रियाओं और मान्यताओं के लिए जाने जाते हैं।

अघोरी शब्द का अर्थ है, प्रकाश की ओर। इसे पवित्र और सभी बुराइयों से मुक्त माना जाता है। लेकिन अघोरी बाबा इसके विपरीत जीवनशैली अपनाते हैं। उनके अधिकांश कार्य गैरकानूनी होते हैं। चेहरे पर भस्म लगाए घूमने वाले अघोरी, कच्चा मांस खाते हैं, वाम-मार्ग अपनाते हैं। इसके साथ ही शवों के साथ शारीरिक संबंध बनाने की भयानक प्रथा भी उनमें है।

अघोरी, शिव और शक्ति के उपासक हैं। वे कहते हैं कि बुरे से बुरे हालात में भी ईश्वर को समर्पित होना ही पूजा का सरल मार्ग है। इसीलिए वे शवों के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं।

अघोरी साधु, शवों की पूजा करते हैं और उनके साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं। वे इसे शिव और शक्ति की पूजा का तरीका मानते हैं। उनकी मान्यता है कि शव के साथ शारीरिक क्रिया करते समय मन ईश्वर की भक्ति में लीन रहता है। वे शव पर भस्म लगाकर, मंत्रों का उच्चारण करते हुए, ढोल बजाते हुए शारीरिक संबंध बनाते हैं। कहा जाता है कि जब महिलाएं मासिक धर्म में होती हैं, तब शारीरिक संबंध बनाने से अघोरियों की शक्ति बढ़ती है। अन्य साधुओं की तरह अघोरी ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते। वे सिर्फ़ शवों के साथ ही नहीं, जीवित लोगों के साथ भी शारीरिक संबंध बनाते हैं।

शिव - शव के उपासक : अघोरी पूरी तरह से शिव की भक्ति में लीन होना चाहते हैं। अघोर, शिव के पांच रूपों में से एक है। शिव की पूजा के लिए ये अघोरी शव पर बैठकर ध्यान करते हैं। शिव की कृपा पाने के लिए यह अघोर पंथ का विशेष तरीका है। अघोरी तीन तरह की शव साधना करते हैं। इसमें शव को मांस और मदिरा अर्पित की जाती है। तीसरा, शव पर एक पैर रखकर तपस्या करना। यह श्मशान में होता है। इस दौरान हवन किया जाता है।

आम लोगों के लिए अघोरियों के ये काम घृणित हैं, लेकिन अघोरियों के लिए यह आध्यात्मिक अभ्यास का एक हिस्सा है। शव से तेल निकालकर अघोरी उसे बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल करते हैं। वे मानते हैं कि इससे एड्स, कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज संभव है। लेकिन इस पर कोई शोध नहीं हुआ है। 

अघोरियों का जीवन : अघोरी शिव के अलावा किसी देवता में विश्वास नहीं रखते। वे किसी से द्वेष नहीं करते। कुत्तों के अलावा गाय, मुर्गे जैसे किसी जानवर को नहीं पालते। कुछ मंदिर अघोरियों के लिए होते हैं, जहां वे रहते हैं। पहले काशी में ज्यादा दिखने वाले ये अघोरी अब देशभर में हैं। नेपाल का अघोरी कुटी, काली मठ, चित्रकूट जैसे कई मंदिर उनके लिए हैं।

PREV

Recommended Stories

Hanuman Puja: हनुमानजी को कैसे चढ़ाएं चोला? पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री से जानें 5 बातें
Makar Sankranti: साल 2026 में कब है मकर संक्रांति, 14 या 15 जनवरी? नोट करें सही डेट