मथुरा का अनोखा मंदिर: जहां श्रीकृष्ण के साथ पूजी जाती है बीमार बुढ़िया, यहां की धूल से दूर होते हैं चर्म रोग

Published : May 21, 2025, 01:03 PM IST
Uniqye Krishna Temple

सार

Unique Temples of Mathura: हमारे देश में भगवान श्रीकृष्ण के अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं। इनमें से कुछ मंदिरों से कोई न कोई खास बात जरूर जुड़ी हुई है। मथुरा में भी ऐसा एक मंदिर है, जहां श्रीकृष्ण के साथ एक बूढ़ी महिला की पूजा भी होती है। 

Unique temple of Shri Krishna: मथुरा भगवान श्रीकृष्ण का जन्म स्थान हैं, इसलिए यहां भगवान श्रीकृष्ण के अनेक विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं। इन्हीं फेमस मंदिरों के बीच श्रीकृष्ण का एक छोटा सा ऐसा मंदिर भी है जो लोगों की आस्था का केंद्र हैं। ये मंदिर भले ही ज्यादा बड़ा न हो लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से इसका विशेष महत्व है। खास बात ये है कि इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के साथ एक बीमार बूढ़ी महिला की पूजा भी की जाती है। आगे जानिए कौन-सा है ये मंदिर और इससे जड़ी खास बातें…

कहां होती है श्रीकृष्ण के साथ बूढ़ी महिला की पूजा?

मथुरा के जिस मंदिर की बात हम कर रहे हैं, वह अंतापारा क्षेत्र में है जो मथुरा के परिक्रमा मार्ग के बीच में पड़ता है और विश्राम घाट पर स्थित है। इस मंदिर का नाम श्री कुब्जा कृष्णा भाव मंदिर है। दिखने में ये मंदिर भले ही छोटा लगे, लेकिन लोगों के प्रति इसके प्रति काफी आस्था है। हजारों लोग प्रतिदिन यहां आकर माथा टेकते हैं। ये मंदिर काफी प्राचीन है लेकिन समय के साथ-साथ ये जीर्ण-शीर्ण हो गया है।

कौन थीं ये बीमार बूढ़ी महिला?

मथुरा के इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के साथ जिस महिला की पूजा की जाती है, उसका नाम कुब्जा है। कुब्जा की कथा श्रीमद्भागवत में भी मिलती है। उसके अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण जब कंस का वध करने के लिए मथुरा आए तो यहां उन्हें एक वृद्ध और बीमार महिला दिखाई दी, जिसका कूबड़ निकला हुआ था, इसलिए सभी लोग उसे कुब्जा कहकर मजाक उड़ाते थे। भगवान श्रीकृष्ण न सिर्फ उस महिला का कूबड़ ठीक किया बल्कि उसे सुंदर भी बना दिया। जिस स्थान पर श्रीकृष्ण ने ये चमत्कार किया था, उसी स्थान पर ये मंदिर बना है।

ये है मंदिर से जुड़ी मान्यता

इस मंदिर से एक चमत्कारी मान्यता भी जुड़ी है। उसके अनुसार इस मंदिर की रज यानी धूल शरीर लगाने से चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है और सुंदरता भी मिलती है। भगवान श्रीकृष्ण ने कुब्जा को ये वरदान दिया था, जिसके चलते ये मान्यता आज भी इस मंदिर से जुड़ी हुई है।


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