
Parshuram Jayanti 2025: वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हर साल परशुराम जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसे परशुराम जयंती भी कहते हैं। भगवान परशुराम से जुड़ी अनेक कथाएं रामायण और महाभारत आदि धर्म ग्रंथों में मिलती है। ये भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक थे। परशुराम अष्ट चिंरजीवियों में से एक हैं यानी वे आज भी जीवित हैं और किसी गुप्त स्थान पर रहकर तपस्या कर रहे हैं। आगे जानिए इस बार कब है परशुराम जयंती और ब्राह्मण होकर भी इनमें क्यों थे क्षत्रियों वाले गुण…
पंचांग के अनुसार, इस बार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 29 अप्रैल, मंगल वार की शाम 05 बजकर 31 मिनिट से शुरू होगी, जो 30 अप्रैल, बुधवार की शाम 02 बजकर 12 मिनिट तक रहेगी। चूंकि तृतीया तिथि का सूर्योदय 30 अप्रैल को होगा, इसलिए इसी दिन परशुराम जन्मोत्सव मनाया जाएगा।
महाभारत में भगवान परशुराम के जन्म से जुड़ी एक कथा मिलती है, उसके अनुसार, प्राचीन समय में गाधि नाम के एक पराक्रमी राजा थे। उनकी एकमात्र पुत्री थी, जिसका नाम सत्यवती था। राजकुमारी सत्यवती का विवाह महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक से हुआ था।
विवाह के बाद सत्यवती ने अपने ससुर महर्षि भृगु से कहा कि ‘मेरे पिता की कोई और संतान नहीं है, ऐसी स्थिति में उनका वंश का लोप न हो जाए, इसका कुछ उपाय कीजिए।’
तब महर्षि भृगु ने अपनी बहू सत्यवती को दो फल दिए और कहा कि ‘ऋतु स्नान के बाद तुम गूलर के वृक्ष का तथा तुम्हारी माता पीपल के वृक्ष का आलिंगन करने के बाद ये फल खा लेना। इससे तुम दोनों को उत्तम संतान की प्राप्ति होगी।’
गलती से सत्यवती और उनकी माता ने गलत वृक्षों का आलिंगन कर वो फल खा लिए। जब यह बात महर्षि भृगु को पता चली तो उन्होंने सत्यवती से कहा कि ‘तुमने गलत वृक्ष का आलिंगन किया है। इसलिए तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला रहेगा और तेरी माता का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मण बन जाएगा।’
ससुर की बात सुनकर सत्यवती बोली ‘मेरा पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला न हो भले ही मेरा पौत्र (पुत्र का पुत्र) ऐसा हो।’
महर्षि भृगु ने कहा ’ठीक है, ऐसा ही होगा। तुम्हारे पोते में क्षत्रियों वाले गुण होंगे।’
समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्रि मुनि का जन्म हुआ। इनका विवाह रेणुका से हुआ। मुनि जमदग्रि के पुत्र परशुराम थे, जिनका स्वभाव क्षत्रियों के समान था।
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