Ahoi Ashtami 2022: संतान की लंबी उम्र के लिए 17 अक्टूबर को करें अहोई अष्टमी व्रत, जानें पूजा विधि

Ahoi Ashtami 2022: इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 17 अक्टूबर, सोमवार को किया जाएगा। महिलाएं ये व्रत संतान की लंबी उम्र के लिए करती हैं। ये व्रत वैसे तो पूरे देश में किया जाता है, लेकिन उत्तर भारत में मुख्य तौर इस व्रत की मान्यता है।
 

Manish Meharele | Published : Oct 11, 2022 3:37 AM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami 2022 Puja Vidhi) का व्रत किया जाता है। महिलाओं के लिए ये व्रत बहुत ही खास है क्योंकि मान्यता के अनुसार, ये व्रत करने से संतान की उम्र बढ़ती है और सेहत भी ठीक रहती है। इस बार ये व्रत 17 अक्टूबर, सोमवार को किया जाएगा। नि:संतान महिलाएं भी ये व्रत संतान की इच्छा से करती हैं। आगे जानिए इस व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, महत्व, कथा व अन्य खास बातें…

अष्टमी तिथि कब से कब तक? (Ahoi Ashtami 2022 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 17 अक्टूबर, सोमवार की सुबह 09:30 से 18 अक्टूबर, मंगलवार की दोपहर 11:58 तक रहेगी। इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र दिन भर रहेगा। इस दिन शिव और सिद्ध नाम के शुभ योग पूरे दिन रहेंगे, जिसके चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ जाएगा।

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इस विधि से करें व्रत व पूजा (Ahoi Ashtami 2022 Puja Vidhi)
- अहोई अष्टमी की सुबह यानी 17 अक्टूबर, सोमवार को सुबह उठकर स्नान करें और यह संकल्प लें- मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं, अहोई माता मेरी संतान को लंबी उम्र, स्वस्थ एवं सुखी रखें। 
- संकल्प के बाद गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं। साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र भी बनाएं। (आजकल बाजार में ये चित्र बने हुए मिलते हैं।) दिन भर निराहार करें। यानी कुछ भी खाए-पीएं नहीं?
- शाम को इन चित्रों की सामने बैठकर अहोई माता की पूजा करें। अहोई माता को सुहाग की सामग्री व अन्य चीजें चढ़ाएं। सेह की पूजा रोली, चावल, दूध व चावल से की जाती है। 
- पूजा में एक कलश में जल भर कर रख लें, जिसे बाद में तुलसी पर चढ़ा दें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुनें। पूजा के बाद सास के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके बाद ही अन्न जल ग्रहण करें।

ये है अहोई माता व्रत की कथा (Ahoi Ashtami Katha)
- एक प्राचीन कथा के अनुसार, किसी नगर में चंपा नाम की एक महिला रहती थी। उसकी कोई संतान नहीं थी। एक वृद्ध महिला ने उसे अहोई अष्टमी व्रत करने के लिए कहा। 
- चंपा की एक पड़ोसन भी थी, जिसका नाम चमेली था। उसने भी चंपा को देख अहोई अष्टमी का व्रत किया। चंपा ने श्रद्धा से व्रत किया और चमेली ने अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए। 
- व्रत से प्रसन्न होकर देवी ने चंपा और चमेली को दर्शन दिए। देवी ने उनसे वरदान मांगने को कहा- चमेली ने तुरंत एक पुत्र मांग लिया, जबकि चंपा ने कहा -आप बिना मांगे ही मेरी इच्छा पूरी कीजिए। 
- तब अहोई माता ने कहा कि- उत्तर दिशा में एक बाग में बहुत से बच्चे खेल रहे हैं। तुम दोनों वहां जाओ और जो बच्चा तुम्हें अच्छा लगे, उसे अपने घर ले आना। यदि न ला सकी तो तुम्हें संतान नहीं मिलेगी। 
- चंपा व चमेली दोनों बाग में जाकर बच्चों को पकड़ने लगी। बच्चे रोने लगे। चंपा से उनका रोना नहीं देखा गया। उसने किसी बच्चे को नहीं पकड़ा, लेकिन चमेली ने एक बच्चे को कसकर पकड़ लिया। 
- तभी वहां अहोई माता प्रकट हुईं और चंपा की प्रशंसा करते हुए उसे पुत्रवती होने का वरदान दिया पर चमेली को मां बनने के लिए अयोग्य सिद्धि कर दिया। इस तरह अहोई माता की कृपा से चंपा की इच्छा पूरी हुई।

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