Devuthani Ekadashi 2022: देवउठनी एकादशी 4 नवंबर को, जानें पूजा विधि, मुहूर्त व अन्य खास बातें

Devuthani Ekadashi 2022: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इसे तिथि पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए व्रत और पूजा की जाती है। साल में कुल 24 एकादशी होती है, इन सभी का अलग-अलग महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। 
 

Manish Meharele | Published : Oct 27, 2022 11:23 AM IST / Updated: Nov 02 2022, 01:50 PM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। इसे देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi 2022) के नाम से भी जाना जाता है। इस बार ये तिथि 4 नवंबर, शुक्रवार को है। मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान विष्णु नींद से जागते हैं और सृष्टि का संचालन करते हैं। इस दिन तुलसी विवाह की परंपरा भी है। इस पर्व से कई मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। आगे जानिए देवउठनी एकादशी की पूजा विधि, महत्व, शुभ योग आदि संपूर्ण जानकारी… 

ये शुभ बनेंगे देवउठनी एकादशी पर (Devuthani Ekadashi 2022 Shubh Yog)
पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 03 नवंबर, गुरुवार की शाम 07:30 से शुरू होगी, जो 04 नवंबर, शुक्रवार की शाम  06:08 तक रहेगी। चूंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 4 नवंबर को होगा, इसलिए इसी तिथि पर ये व्रत किया जाएगा। इस दिन हर्षण और ध्वज नाम के 2 शुभ योग रहेंगे। इसके अलावा शुक्र और बुध की युति से लक्ष्मीनारायण योग भी इस समय रहेगा। इन योगों में की गई पूजा का शुभ फल बहुत ही जल्दी प्राप्त होता है।

इस विधि से करें पूजा (Devuthani Ekadashi Puja Vidhi)
- देवउठनी एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। पूरे दिन उपवास रखें। शाम को किसी साफ स्थान पर भगवान विष्णु का चित्र स्थापित करें।
- पूजा स्थान पर शुद्ध घी की दीपक जलाएं। भगवान को हार-फूल चढ़ाकर अबीर, गुलाल, चंदन, फल आदि चीजें अर्पित करें। इसके बाद अपनी इच्छा भोग लगाएं और नीचे लिखे मंत्र बोलें- 
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।
- इसके बाद भगवान की आरती करें और फूल अर्पण करके निम्न मंत्रों से प्रार्थना करें-
इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।

भगवान विष्णु की आरती (Lord Vishnu Aarti)
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥ 

देवउठनी एकादशी का महत्व (Importance of Devuthani Ekadashi)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, जिस तरह मनुष्य सोते हैं, उसी तरह भगवान विष्णु भी चार महीने तक पाताल लोक में आराम करते हैं। ये समय देवशयनी एकादशी से शुरू होकर देवउठनी एकादशी तक का होता है। इन 4 महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। चूंकि इस दौरान भगवान विष्णु सोते हैं तो कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह आदि भी इस दौरान नहीं किया जाता। देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु नींद से जागते हैं और सृष्टि का संचालन पुन: अपने हाथों पर लेते हैं। इसी इस एकादशी का सार है।


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