Narak Chaturdashi 2022: अकाल मृत्यु से बचने नरक चतुर्दशी पर करें दीपदान, जानें पूजा विधि और मुहूर्त

Narak Chaturdashi 2022: दीपावली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं। इस बार ये पर्व 23 अक्टूबर, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है।
 

Manish Meharele | Published : Oct 11, 2022 9:28 AM IST / Updated: Oct 11 2022, 05:13 PM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi 2022) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 23 अक्टूबर, रविवार को है। नरक चतुर्दशी को नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है। पुराणों के अनुसार, नरक चतुर्दशी पर यम तर्पण करने से कई तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है।  आगे जानिए इस बार नरक चतुर्दशी पर कौन-कौन से शुभ योग बन रहे हैं, इस दिन के शुभ मुहूर्त और पूजा विधि आदि…

ये हैं नरक चतुर्दशी के शुभ मुहूर्त (Narak Chaturdashi 2022 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 23 अक्टूबर, रविवार की शाम 06:03 से 24 अक्टूबर, सोमवार की शाम 05:27 तक रहेगी। चूंकि नरक चतुर्दशी पर दीपदान प्रदोष काल यानी शाम को किया जाता है, इसलिए ये पर्व 23 अक्टूबर, रविवार को ही मनाया जाएगा। इस दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होने से मित्र और हस्त नक्षत्र होने से मानस नाम के 2 शुभ योग बन रहे हैं। दीपदान का मुहूर्त इस प्रकार हैं- शाम 05.43 से रात 08.17 तक। 

इस विधि से करें पूजा (Narak Chaturdashi 2022 Puja Vidhi)
- नरक चतुर्दशी की सुबह शरीर पर तिल के तेल की मालिश करके सूर्योदय से पहले स्नान करने का विधान है। इसे अभ्यंग स्नान कहते हैं। स्नान के दौरान अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) को शरीर पर स्पर्श करना चाहिए और ये मंत्र बोलना चाहिए-सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम्।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।
- नहाने के बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ये मंत्र बोलें और प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि दें। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं- ऊं यमाय नम:, ऊं धर्मराजाय नम:, ऊं मृत्यवे नम:, ऊं अन्तकाय नम:, ऊं वैवस्वताय नम:, ऊं कालाय नम:, ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊं औदुम्बराय नम:, ऊं दध्राय नम:, ऊं नीलाय नम:, ऊं परमेष्ठिने नम:, ऊं वृकोदराय नम:, ऊं चित्राय नम:, ऊं चित्रगुप्ताय नम:।
- इस प्रकार तर्पण सभी पुरुषों को करना चाहिए, चाहे उनके माता-पिता जीवित हों या उनकी मृत्यु हो चुकी हो। फिर देवताओं का पूजा कर शाम को प्रदोष काल में यमराज को दीपदान करने का विधान है।

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इसलिए करते हैं यमराज की पूजा (Narak Chaturdashi Katha)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार में बलि से तीन पग धरती मांगकर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया तब बलि ने उनसे प्रार्थना की- 'हे प्रभु! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरा संपूर्ण राज्य नाप लिया। इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी पर यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए। भगवान वामन ने बलि की ये प्रार्थना स्वीकार कर ली और तभी से कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर यमराज के निमित्त दीपदान करने की परंपरा चली आ रही है। 


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