Paush Putrada Ekadashi 2023: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इस तिथि पर व्रत किया जाता है और भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है। एक महीने में 2 बार एकादशी तिथि आती है। इस तरह साल में कुल 24 एकादशी होती है।
उज्जैन. हिंदू पंचांग के अनुसार, एक महीने में 2 एकादशी होती है। इस तरह साल में कुल 24 एकादशी के व्रत किए जाते हैं। इसी क्रम में पौष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी (Paush Putrada Ekadashi 2023) कहते हैं। कुछ ग्रंथों में इसे वैकुंठ एकादशी (Vaikuntha Ekadashi 2023) भी कहा गया है। इस बार ये एकादशी 2 जनवरी, सोमवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन जो व्यक्ति व्रत करता है, उसे संतान सुख मिलता है और मृत्यु के बाद वैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है। इस बार वैकुंठ एकादशी पर चर, सुस्थिर और साध्य नाम के शुभ योग बन रहे हैं। आगे जानिए पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि, शुभ योग, मुहूर्त व अन्य खास बातें…
इस विधि से करें व्रत और पूजा (Paush Putrada Ekadashi Puja Vidhi)
2 जनवरी, सोमवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। पास में लड्डू गोपाल की प्रतिमा भी रखें। पहले दोनों प्रतिमाओं का दूध से अभिषेक करें, इसके बाद पानी से। कुंकुम का तिलक लगाएं, हार पहनाएं, फूल चढ़ाएं और शुद्ध घी की दीपक लगाएं। अबीर, गुलाल, रोली आदि चीजें चढ़ाते रहें। माखन-मिश्री का भोग विशेष रूप से लगाएं, इसमें के तुलसी के पत्ते भी जरूर रखें। भगवान को पीले वस्त्र चढ़ाएं। अंत में आरती करें और प्रसाद भक्तों में बांट दें।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Paush Putrada Ekadashi Katha)
किसी समय भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा था। उसका कोई पुत्र नहीं था। इस बात से राजा काफी परेशान रहता था। एक दिन राजा परेशान होकर जंगल की ओर चला गया। वहां उसने एक सरोवर देखा। उस सरोवर के चारों तरफ बहुत सारे ऋषि-मुनि एकत्रित थे। राजा ने उन्हें देखकर पूजा कि “आप कौन हैं और किसलिए यहाँ आए हैं। कृपा करके बताइए”
मुनियों ने कहा कि “ हे राजन, आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।”
ये सुनकर राजा ने कहा कि “मेरी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए।”
मुनि बोले “आज पुत्रदा एकादशी है। आप ये व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा।”
राजा ने अपनी पत्नी सहित पूरे विधि-विधान से ये व्रत किया। व्रत के प्रभाव से कुछ दिनों बाद रानी ने गर्भ धारण किया और समय आने पर रानी ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ। इस तरह पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से राजा को योग्य संतान की प्राप्ति हुई।
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