Shattila Ekadashi 2023: 18 जनवरी को इस विधि से करें षटतिला एकादशी व्रत, जानें मुहूर्त, महत्व और कथा

Shattila Ekadashi 2023: माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं। इस बार ये तिथि 18 जनवरी, बुधवार को है। इस दिन तिल का उपयोग विशेष रूप से 6 कामों में किया जाता है। इसलिए इसे षटतिला एकादशी कहते हैं।
 

Manish Meharele | / Updated: Jan 18 2023, 06:00 AM IST

उज्जैन. ज्योतिष शास्त्र और धर्म ग्रंथों में हर तिथि का विशेष महत्व बताया गया है। इन सभी में एकादशी तिथि सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र बताई गई है। इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत व पूजा की जाती है। साल में कुल 24 एकादशी होती है। इनमें से माघ मास के कृष्ण पक्ष  की एकादशी को षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi 2023) कहते हैं। इस बार ये तिथि 18 जनवरी, बुधवार को है। आगे जानिए षटतिला एकादशी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, कथा और महत्व…

षटतिला एकादशी पर बनेंगे ये शुभ योग (Shattila Ekadashi 2023 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, 18 जनवरी, बुधवार को एकादशी तिथि शाम 4 बजे तक रहेगी। चूंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 18 जनवरी को हुआ है तो ये व्रत इसी दिन किया जाएगा। बुधवार को पहले अनुराधा नक्षत्र होने से वृद्धि और ज्येष्ठा नक्षत्र होने से ध्रुव नाम के 2 शुभ योग इस दिन बन रहे हैं। इनके अलावा अमृत सिद्धि, सर्वार्थसिद्धि और सौम्य नाम के 3 अन्य शुभ योग भी इस दिन रहेंगे।  

इस विधि से करें षटतिला एकादशी व्रत (Shattila Ekadashi 2023 Puja Vidhi)
- 18 जनवरी, बुधवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत-पूजा का संकल्प लें। इस बाद घर का को कोई हिस्सा साफ करें और गंगाजल से उसे पवित्र करें। 
- इसके बाद वहां एक चौकी रखकर लाल कपड़ा बिछाएं। इसके ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
- भगवान की प्रतिमा पर फूल व माला चढ़ाएं। कुंकुम से तिलक लगाएं। इसके बाद गंध, धूप, पान सहित विष्णु भगवान की षोड्षोपचार विधि से पूजा करें।
- इस दिन भगवान को उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर भोग लगाएं। 108 बार ऊं नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा बोलकर तिल से हवन करें। 
- भगवान की पूजा कर इस मंत्र से अर्घ्य दें-
सुब्रह्मण्य नमस्तेस्तु महापुरुषपूर्वज।
गृहाणाध्र्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते।।

- अंत में आरत करें और रात को भजन-कीर्तन करें। अगले दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। इसके बाद ही स्वयं तिल युक्त भोजन करें। 
- इस तरह यह व्रत विधि-विधान पूर्वक करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और हर तरह की परेशानियां दूर हो सकती हैं।

ये है षटतिला एकादशी व्रत का महत्व (Significance of Shatila Ekadashi)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, षटतिला एकादशी के व्रत से घर में सुख-शांति रहती है और व्रती (व्रत करने वाला) के जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं। पुराणों में कहा गया है कि व्यक्ति को जितना पुण्य कन्यादान और हजारों सालों की तपस्या से मिलता है, उतना पुण्य षटतिला एकादशी का व्रत रखने से प्राप्त होता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।

षटतिला एकादशी की कथा (Shatila Ekadashi Katha)
षटतिला एकादशी की कथा स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताई थी। उसके अनुसार, किसी समय एक सदाचारी ब्राह्मी पृथ्वी पर रहती थी। वह निरंतर व्रत-उपवास किया करती थी, लेकिन उसने कभी देवताओं और ब्राह्मणों को अन्न का दिन नहीं किया था। एक दिन उसके घर एक भिक्षुक अन्न के लिए आया। 
ब्राह्मणी ने उसे एक मिट्टी के ढेला दान में दे दिया। जब उस ब्राह्मणी की मृत्यु हुई तो व्रत-उपवास के कारण उसे एक आम वृक्ष सहित घर मिला, किंतु वह घर पूरी तरह से खाली था। जब ब्राह्मणी ने इसका कारण पूछा तो बताया गया कि तुमने कभी किसी भिक्षुक को अन्न का दान नहीं किया है, इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा हुआ है।
ये सुनकर वह ब्राह्मणी बहुत उदास गई। तब स्वयं भगवान विष्णु प्रकट हुए और उससे बोले कि  'तुम अपने घर जाओ और जब देव-स्त्रियां तुम्हारे घर लाएं तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत का माहात्म्य और विधान पूछना। जब तक वह न बताएं, तब तक द्वार नहीं खोलना।
भगवान की बात सुनकर वह ब्राह्मणी अपने घर चली गई और जब देव-स्त्रियां आईं और उन्होंने द्वार खोलने का कहा तो ब्राह्मणी ने कहा कि 'यदि आप मुझे देखने आई हैं तो पहले मुझे षटतिला एकादशी का माहात्म्य बताएं।' देव स्त्रियों ने ब्राह्मणी को षटतिला एकादशी की विधि और महत्व बता दिया।
समय आने वाल ब्राह्मणी ने उसी विधि के अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से उसका घर धन्य-धान्य से भर गया। इस तरह षटतिला एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसकी हर इच्छा पूरी हो सकती है।

 

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