सिर्फ 45 दिन में पहुंचेंगे मंगल ग्रह, जानें वैज्ञानिकों ने कौन सी तकनीक की डेवलप, नासा का दावा-500 दिन लगेंगे

नासा (NASA) के अनुसार मनुष्यों को लाल ग्रह (Red Planet) तक पहुंचने में लगभग 500 दिन लगेंगे। वहीं कनाडा के इंजीनियर्स का कहना है कि इस सफर को सिर्फ 45 दिनों में पूरा किया जा सकता है। इसके लिए वो लेजर तकनीक (Laser Technology) पर काम कर रहे हैं।

टेक डेस्‍क। कुछ साल पहले भारत में मिशन मंगल नाम से भारत में एक फ‍िल्‍म बनी थी, जिसमें दिखाया गया था कि कैसे भारत ने पहली ही बार में मंगल ग्रह पर पहुंचने में सफलता हासिल की थी। उसके बाद से भारत लगातार स्‍पेस साइंस (Space Scince) में सफलता हासिल कर रहा है। वहीं अब दुनिया की तमाम एजेंसि‍यां इस होड़ में हैं कि मंगल ग्रह (Mars) के सफर के समय को कैसे कम किया जाए। वैसे नासा (NASA) का मानना है कि मंगल ग्रह पहुंचने में 500 दिन यानी डेढ़ साल का समय लगता है। अब कनाडा के इंजीनियर्स का कहना है कि इस समय को डेढ़ महीने तक समेटा जा सकता है। इसका मतलब है कि मात्र 45 मिन में मंगल ग्रह पर पहुंचा जा सकता है। आइए आपको भी बताते हैं कि आखि‍र कनाडा के इंजीनियर्स किस तकनीक पर काम कर रहे हैं।

कनाडा के इंजीनियर्स का दावा
कनाडा के मॉन्ट्रियल में मैकगिल विश्वविद्यालय के इंजीनियर्स का कहना है कि उन्होंने एक थर्मल लेजर प्रोपल्‍शन सिस्‍टम विकसित किया है, जिसमें हाइड्रोजन फ्यूल को गर्म करने के लिए एक लेजर का उपयोग किया जाता है। यह एक स्‍पेस क्राफ्ट पर फोटोवोल्टिक ऐरेज को पॉवर डिलिवर करने के लिए पृथ्वी से निकाले गए बड़े लेज़रों का उपयोग करते हुए एनर्जी प्रोपल्‍शन को निर्देशित करता है, जो बिजली उत्पन्न करता है।

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तेजी के साथ जाता है रॉकेट
पृथ्वी के निकट रहते हुए स्‍पेस क्राफ्ट की स्‍पीड काफी तेज होती है उसके बाद अगले महीने वो मंगल की ओर दौड़ता है, मेन क्राफ्ट को लाल ग्रह पर उतारने के लिए लॉन्च किया जाता है और बाकी बचे क्राफ्ट को अगले लांच के लिए रिसाइकिल के लिए धरती पर वापस आ जाता है। केवल छह हफ्तों में मंगल पर पहुंचना कुछ ऐसा था जिसे पहले केवल फ‍िजन-पॉवर्ड रॉकेटों के साथ संभव माना जाता था, जो रेडियोलॉजिकल रिस्‍क में इजाफा करता है।

45 दिन में पूरा कर सकता है सफर
ब्रह्मांड के बारे में अध्ययन कर रही टीम ने कहा कि यह सिस्‍टम सौर मंडल के भीतर तेजी से ट्रांसपोर्टेशन की परमीशन देती है। कुछ रिसर्च भविष्यवाणी करते हैं कि यह केवल तीन दिनों में मंगल पर 200 पाउंड का उपग्रह भेज सकता है, और एक बड़े अंतरिक्ष यान को लगभग एक से छह सप्ताह की आवश्यकता होगी। मैकगिल के पूर्व छात्र और टीयू डेल्फ़्ट में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर के छात्र इमैनुएल डोबले ने एक पेपर प्रकाशित किया है जिसमें सुझाव दिया गया है कि इसे मंगल ग्रह की यात्रा पर लागू किया जा सकता है।

भारत ने पहली बार में भेजा था सैटेलाइट  
मंगल ग्रह पृथ्‍वी से करीब 5.46 करोड़ कि‍लोमीटर दूर है। 2014 में भारत ने पहली बारे में ही मंगल ग्रह पर पहुंचने का कारनामा कर दिया था। भारत दुनिया का पहला देश था, जिसने पहली बार में मंगल पर अपना सैटेलाइट सफलतापूर्वक उतार दिया था। जिसके बाद से भारत भी मंगल पर जीवन तलाशने और ग्रह के बारे में ज्‍यादा जानकारी जुटा रहा है।

 

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