आरकॉम की परिसंपत्तियों के लिए जियो प्रबल दावेदार, यूवी एसेट से मिल रही चुनौती

रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) की परिसंपत्तियों के लिए रिलायंस जियो और यूवी एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (यूवीएआरसी) जैसे खरीदरों से करीब 25,000 करोड़ रुपये की बोलियां मिली हैं। 

नई दिल्ली. रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) की परिसंपत्तियों के लिए रिलायंस जियो और यूवी एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (यूवीएआरसी) जैसे खरीदरों से करीब 25,000 करोड़ रुपये की बोलियां मिली हैं। रिलायंस जियो और यूवी एसेट रिकंस्ट्रक्शन की बोलियां अपनी-अपनी श्रेणी में सबसे ऊपर बतायी जा रही है। बैंकिंग सूत्रों ने यह जानकारी दी। रिलायंस जियो ने दिवाला संहिता के तहत नीलाम की जा रही आरकॉम की अनुषंगी कंपनी के मोबाइल टावर एवं फाइबर परिसंपत्तियों के लिए बोली लगाई है।

यूवी एसेट की रुचि आरकॉम के स्पेक्ट्रम और रियल एस्टेट में है। मामले के जानकार सूत्र ने बताया, "जियो और यूवीएआरसी 13 जनवरी को कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) की बैठक में सबसे ऊंची बोली लगाने वाले खरीदार के रूप में उभरी हैं।" सूत्रों के अनुसार आरकॉम की सम्पत्तियों के लिए करीब 25,000 करोड़ रुपये की बोलियां लगायी गयी हैं।

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3 महीने के अंदर 30 फीसदी पैसा देना चाह रहे हैं खरीददार 
बताया जा रहा है कि रिलायंस जियो ने रिलायंस इंफ्राटेल लिमिटेड के मोबाइल टावर एवं फाइबर परिसंपत्तियों के लिए 4,700 करोड़ रुपये की पेशकश की है। इसी तरह यूवी एसेट की बोलियां कुल मिला कर16,000 करोड़ रुपये के स्तर की हैं। सूत्र ने बताया कि बोली लगाने वाली कंपनियों ने 30 प्रतिशत पैसा 90 दिन के अंदर जमा कराने की पेशकश की है। इस तरह कर्जदाता बैंकों को तीन महीने में सात-आठ हजार करोड़ रुपये वसूल हो सकते हैं।

2012 के बाद से 12 बड़ी कंपनियां हुई बंद
जानकार सूत्रों के अनुसार रिलायंस कम्युनिकेशंस पर बैंकों समेत कुल 38 कर्जदाताओं / उधार देने वालों का करीब 33,000 करोड़ रुपये का बकाया है। इस तरह दिवाला समाधान प्रक्रिया के तहत बकाए के तीन चौथाई धन की वसूली होने का अनुमान है। यह प्रस्ताव परवान चढ़ा तो बैंकों के दूरसंचार क्षेत्र में फंसे कर्ज की यह अब तक की सबसे बड़ी वसूली होगी। साल 2012 के बाद संक्रमण काल से गुजर रहे दूरसंचार सेवा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की 12 बड़ी कंपनियों में से नौ कंपनियां या तो बंद हो चुकी हैं या बाजार से निकल चुकी हैं।

सूत्र ने कहा, "इसके अलावा कर्जदाता, चीनी ऋणदाताओं (1,300 करोड़ रुपये) और भारतीय ऋणदाताओं (3000 करोड़ रुपये) को प्राथमिक रूप से किए गए करीब 4,300 करोड़ रुपये के भुगतान को वापस लेंगे।"
  
(यह खबर समाचार एजेंसी भाषा की है, एशियानेट हिंदी टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)
 

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