क्या था बिहार का असली जंगलराज? ऊंची जाति के आगे क्या थी पिछड़ों की हैसियत

Published : Nov 17, 2025, 01:21 PM IST
Bihar jungle raj

सार

बिहार के जंगलराज में दलितों को ऊंची जाति से अत्याचार सहना पड़ता था। नया कपड़ा पहनना, नौकरी जॉइन करना भी मुश्किल था। अब हालात बेहतर हैं, पर जातिवाद अभी भी बना हुआ है।

What was the real jungle raj of Bihar:  बिहार में एक बार फिर जेडीयू और बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई है। इससे पहले जब भी प्रधानमंत्री मोदी ने जनसभाएं की तो बिहार के जंगलराज की जरुर चर्चा हुई । आमतौर पर लोगों को जंगलराज का मतलब अपराधीकरण, बलवा, अपहरण, हत्या, उगाही, जमीन हड़पने जैसे मामलों से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन लालू युग में दलितों की हालत इससे भी बदतर थी । हाल ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें कार का ड्राइवर छोटी जातियों के साथ होने वाले अत्याचार को बता रहा है। 

ड्राइवर ने बताई आपबीती,  दलितों के साथ हुआ जुल्म

 बिहार में एक महिला ने ड्राइवर के साथ बातचीत को मोबाइल में रिकॉर्डिंग की है। इसमें उसने एक छोटी जाति के शख्स को होने वाली मुश्किलों के बारे में बताया है। उसने बताया कि असली जंगलराज क्या होता है। यदि सामने को अगड़ी जाति का कोई शख्स दिख जाता था तो दलितों को अपने सिर पर चप्पल रखना पड़ता था। नए कपड़े नहीं पहन सकते थे। कोई धूम धड़ाका नहीं किया जा सकता था। यदि किसी की नौकरी लग जाए और वो अबने घऱ वापस आता तो स्टेशन पर फटे पुराने कपड़े बदलने पड़ते थे। नहीं तो यहां राजपूत-ठाकुर बेदम होने तक पीटते थे। शादी में कोई खुशी- नाच गाना नहीं किया जा सकता था। यदि गलती से सवर्णों की निगाह पड़ जाए तो उस परिवार का जीना मुश्किल कर देते थे। वहीं कई रिपोर्ट में ये भी कहा गया है किछोटी- छोटी लड़कियों की इज्जत भी महफूज नहीं थी।  इन्हें चार दीवारी में ही कैद रखा जाता था। यदि किसी की निगाह पड़ जाती थी, तो फिर उसे जी भरकर नोचते खसोटते थे।  

 

 

ड्राइवर ने मौजूदा हालातों पर कहा, हालांकि अब समय बदल गया है। लेकिन जातिवाद तो अभी भी है। आज भी यादवों की ही तूती बोलती है, वो जो मर्जी आए कर सकते हैं।

बिहार में लालू यादव के राज में हुई जमकर मनमानी

बिहार के जंगलराज के दौर में दलितों को बेहद विपरीत हालातों का का सामना करना पड़ता था। यह हालात उस दौर के कड़े जातिवाद और सामाजिक भेदभाव का जीता-जागता उदाहरण है, जो जंगलराज के रूप में जाना जाता था। इस दौर में कानून और व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई थी, और सामाजिक सत्ता का केवल जाति के आधार पर निर्धारित होती थी। दलितों को जीने के अधिकारों के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था, वहीं अगड़ी जाति के लोग जैसा चाहे वैसा नाच नचाते थे।

 

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