माता-पिता ने बच्चे का ऐसा क्या नाम रख दिया कि मामला पहुंच गया कोर्ट

ब्राज़ील में एक दंपति द्वारा अपने बच्चे का नाम मिस्र के पहले अश्वेत फारोह 'पिये' के नाम पर रखने की कोशिश अदालत पहुंच गई।

अपने बच्चों का नामकरण करना कई बार बड़ा मुश्किल काम होता है. पिता को पसंद आए तो मां को पसंद नहीं आता. और अगर मां-बाप दोनों राज़ी हो जाएं तो घर के बाकी लोगों को पसंद आना ज़रूरी नहीं. खैर, आखिरकार बच्चे का कोई न कोई नाम तो रख ही दिया जाता है! बड़ा होकर उसे या उसे वह नाम पसंद आए या न आए, यह अलग बात है. हालाँकि, यहाँ एक माँ-बाप ने अपने नवजात बेटे का नाम मिस्र के पहले अश्वेत फारोह के नाम पर रखने की ठान ली. मगर, उनकी यह ज़िद उन्हें अदालत तक ले गई. मिनास गेरैस की एक अदालत ने पहले तो यह कहकर नाम रखने से रोक दिया कि बैले मूव प्लाई (ballet move plie) जैसा दिखने वाला यह नाम बच्चे के लिए बदमाशी और मज़ाक का कारण बनेगा. हालाँकि, बाद में एक अलग जज ने इस फ़ैसले पर पुनर्विचार किया और डैनिलो और कैटरिना प्रिमोला को उनके बेटे का नाम उस महान ऐतिहासिक शख्सियत के सम्मान में रखने की अनुमति दे दी, ऐसा रिपोर्ट्स में बताया गया है. 

दरअसल, बच्चे का नाम रजिस्टर कराने गए तो वहाँ से मामला शुरू हुआ. बेलो होरिज़ोंटे रजिस्ट्री ऑफिस ने फारोह नाम रखने से मना कर दिया. माता-पिता ने बताया कि उन्होंने अपने काले अफ्रीकी विरासत की याद में और अपने बेटे की नस्ल का प्रतिनिधित्व करने के लिए यह नाम चुना है, लेकिन उनकी एक न चली.  पच्चीसवें राजवंश में मिस्र के राजा रहे पिये (Piye) या 'पियानखी' (Piankhy) को उनकी सैन्य उपलब्धियों और पिरामिड वास्तुकला में नवाचारों के लिए जाना जाता है. हालाँकि, अदालत का कहना था कि आज के ज़माने में यह नाम बच्चे के लिए ज़िंदगी भर शर्मिंदगी का कारण बनेगा. रिपोर्ट्स में यह भी बताया गया है कि अदालत को पिये नाम की आवाज़ और वर्तनी से भी दिक्कत थी क्योंकि उन्हें लगा कि इससे दूसरे बच्चे उसे चिढ़ाएँगे. 

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हालाँकि, माता-पिता ने अदालत में दलील दी कि यह नाम उनकी विरासत और संस्कृति का प्रतीक है. माता-पिता ने यह भी तर्क दिया कि अपनी अफ्रीकी जड़ों को उजागर करने से उनके बेटे का आत्म-सम्मान बढ़ेगा. उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि पिये के प्रति सम्मान जताने के साथ-साथ, उनका मकसद अपने बच्चे को अपनी सांस्कृतिक विरासत के बारे में भी बताना है. रिपोर्ट में बताया गया है कि माता-पिता की दलीलों पर गौर करने के बाद, आखिरकार अदालत ने बच्चे का नाम वही रखने की अनुमति दे दी. 

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