पत्नी की धोखेबाजी और आशिक की हत्या की ऐसी कहानी, जिसने न्याय व्यवस्था तक को हिलाकर रख दिया था

ये कहानी है भारतीय नौसेना के कमांडर के.एम नानावटी, उनकी पत्नी सिल्विया और नानावटी के दोस्त प्रेम आहूजा की।

Piyush Singh Rajput | Published : Nov 18, 2022 8:30 AM IST / Updated: Nov 18 2022, 02:28 PM IST

ट्रेंडिंग डेस्क. शॉकिंग मर्डर्स सीरज में आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे हत्याकांड के बारे में जिसके ट्रायल के दौरान पुलिस व आर्मी अफसरों से लेकर आम जनता, राज्यपाल और प्रधानमंत्री तक को बीच में आना पड़ा था। इस घटना की वजह से न्याय व्यवस्था पर भी कई सवाल उठे। ये कहानी है लव ट्रायंगल मामले में हुए हत्याकांड की, जिसे नानावटी-आहूजा हत्याकांड (Nanavati Ahuja Case) के नाम से जाना जाता है।

नौसेना के कमांडर थे नानावटी

ये घटना 27 अप्रैल 1959 की है, भारतीय नौसेना के कमांडर के.एम नानावटी (K. M. Nanavati) अपने काम के बाद घर लौटते हैं पर उन्हें उनकी पत्नी सिल्विया का व्यवहार कुछ अटपटा सा लगता है। उनकी पत्नी गुमसुम और उनसे दूर रहने लगती है। जिसके बाद वे सिल्विया के इस व्यवहार की वजह पूछते हैं। कुछ समय तक सिल्विया कुछ नहीं बोलती लेकिन बाद में वह अपने और प्रेम आहूजा (Prem Ahuja) से संबंधों को लेकर खुलासा करती है।

पत्नी के अवैध संबंध का चलता है पता

सिल्विया की बात सुनकर नानावटी को बड़ा धक्का लगता है क्योंकि प्रेम आहूजा उनका ही दोस्ता था। नानावटी के नौकरी के सिलसिले में बाहर रहने पर प्रेम उनकी पत्नी सिल्विया के काफी करीब आ गया था। उसने सिल्विया को कई सपने दिखाकर उसके साथ संबंध बना लिए थे। ये सब जानकर नानावटी ने अपनी पत्नी से पूछा कि क्या वह प्रेम आहूजा से शादी करना चाहती है, इसपर सिल्विया ने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि सिल्विया को ये समझ आ गया था कि प्रेम ऐसा कभी नहीं करेगा। 

प्रेम के घर पहुंचते हैं नानावटी

अपने अंदर के क्रोध को दिल में समाए नानावटी पत्नी और बच्चों को लेकर फिल्म दिखाने ले जाते हैं। पत्नी और बच्चों को थिएटर में छोड़कर नानावटी नेवल बेस पहुंचते हैं और वहां से अपनी लाइसेंसी पिस्टल और छह गोलियां लेकर प्रेम आहूजा के दफ्तर पहुंचते हैं। प्रेम के वहां नहीं मिलने पर वे सीधे उसकी घर पहुंच जाते हैं। नानावटी और प्रेम काफी समय से एक-दूसरे के घर जाया करते थे इसलिए प्रेम के घर की सर्वेंट नानावटी को प्रेम के रूम तक ले जाती है।

प्रेम को उतारा मौत के घाट

प्रेम आहूजा के कमरे में जाकर नानावटी दरवाजा अंदर से बंद कर देते हैं। प्रेम बाथरूम से तौलिया लपेट कर निकलता है। नानावटी प्रेम से पूछते हैं कि क्या वह उनकी पत्नी सिल्विया और बच्चों को शादी करके उन्हें अपनाएगा। इसपर प्रेम उनकी पत्नी को लेकर अभद्र टिप्पणी कर देता है, जिसके बाद नानावटी तीन गोलियां प्रेम पर दाग देते हैं, जिससे उसकी वहीं मौत हो जाती है।

नानावटी का आत्म समर्पण

प्रेम आहूजा की हत्या करने के बाद नानावटी अपने मार्शल को इस घटना के बारे में बताते हैं, जिसके बाद प्रेम तत्कालीन पुलिस कमिश्नर के सामने आत्मसमर्पण कर देते हैं। सेना के सबसे बहादुर और प्रतिष्ठित अधिकारियों में गिने जाने वाले नानावटी की कहानी सुनकर पुलिस व सेना के अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों के भी होश उड़ जाते हैं। उस दौर में उनकी छवि कुछ ऐसी थी कि हत्या करने के बावजूद लोगों की संवेदनाएं उनके साथ थीं। उन्हाेंने जो किया उसे समाज के एक विशेष वर्ग ने सही ठहराना शुरू कर दिया था, जिसके बाद अखबारों में इस मामले को खास जगह दी जाने लगी और ये देश का पहला मीडिया ट्रायल वाला मामला बना।

कोर्ट में जूरी ने बताया निर्दोष

उस दौर में कोर्ट में सुनवाई के दौरानी जूरी के सदस्य भी हुआ करते थे। जिन्हें साक्ष्य दिखाकर जज सिर्फ एक शब्द में जवाब मांगा करते थे, 'दोषी या निर्दोष'। नानावटी एक बेहद ताकतवर परिवार से थे, वहीं बतौर नेवल कमांडर उनकी छवि गजब की थी। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तक का दखल था। कोर्ट में सुनवाई के दौरान नानावटी के वकील दावा करते हैं कि प्रेम आहूजा से झगड़े के दौरान उनकी ये पिस्टल चल जाती है। वहीं प्रेम आहूजा को एक अैयाश और हर स्त्री से संबंध बनाने वाला व्यक्ति बताया जाता है। साक्ष्यों के आधार पर जूरी नानावटी को निर्दोष करार दे देती है।

आजीवन कारावास की सजा और रिहाई

इतिहास में ये पहला मामला होता है जब जूरी के आदेश को जज पलट देते हैं। नानावटी को निर्दोष करार देने वाली जूरी के फैसले को चुनौती देते हुए तत्कालीन जज आरबी मेहता इस केस को बॉम्बे हाई कोर्ट भेज देते हैं। पूरे देश में इस मामले की चर्चा होने लगती है, उस दौर में इस मामले पर हर खबर देने वाले अखबार द ब्लिट्ज की कॉपियां सात गुना ज्यादा दाम पर बिकने लगी थी। 1961 में बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई के बाद नानावटी को धारा 302 के तहत दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है। हालांकि, तत्कालीन गर्वनर और पं. जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयालक्ष्मी पंडित द्वारा नानावटी को क्षमादान दे दिया जाता है। इस सत्य घटना पर 'अचानक', 'रुस्तम' और 'द वर्डिक्ट' जैसी फिल्में बन चुकी हैं।

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