
उज्जैन. विद्वानों का कहना है कि जरूरतमंद और परेशान लोगों की मदद से भगवान भैरव प्रसन्न होते हैं। क्योंकि कालभैरव रक्षक का ही रूप है। कालभैरव को भगवान शिव का तीसरा रूद्र अवतार माना जाता है। पुराणों के मुताबिक मार्गशीष महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन ही भगवान कालभैरव प्रकट हुए थे। इस बार काल भैरव अष्टमी 27 नवंबर, शनिवार को है। इस कृष्णाष्टमी को मध्याह्न काल यानी दोपहर में भगवान शंकर से भैरव रूप की उत्पत्ति हुई थी। भगवान भैरव से काल भी डरता है। इसलिए उन्हें कालभैरव भी कहते हैं।
कंबल का दान बहुत शुभ
इस बार कालभैरव अष्टमी शनिवार को है। इसलिए अगहन महीने के चलते इस पर्व पर दो रंग का कंबल दान करना चाहिए। इसे भैरव के साथ शनिदेव भी प्रसन्न होंगे। साथ ही कुंडली में मौजूद राहु-केतु के अशुभ फल में कमी आएगी। पुराणों में बताया गया है कि अगहन महीने में शीत ऋतु होने से ऊनी कपड़ों का दान करना चाहिए। इससे भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की भी कृपा मिलती है।
काल भैरव की रात्रि पूजा का है विशेष महत्व
पुराणों के मुताबिक काल भैरव उपासना प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के वक्त या आधी रात में की जाती है। रात्रि जागरण कर भगवान शिव, माता पार्वती एवं भगवान कालभैरव की पूजा का महत्व है। काल भैरव के वाहन काले कुत्ते की भी पूजा होती है। कुत्ते को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। पूजा के समय काल भैरव की कथा भी सुनी या पढ़ी जाती है।
ये उपाय करें
- कालभैरव अष्टमी पर कुत्तों को जलेबी और इमरती खिलाने की परंपरा है। ऐसा करने से भगवान कालभैरव प्रसन्न होते हैं। इस दिन गाय को जौ और गुड़ खिलाने से राहु से होने वाली तकलीफ खत्म होने लगती है।
- साथ ही इस दिन सरसों का तेल, काले कपड़े, खाने की तली हुई चीजें, घी, जूते-चप्पल, कांसे के बर्तन और जरूरतमंद लोगों से जुड़ी किसी भी चीज का दान करने से शारीरिक और मानसिक परेशानियां दूर होती हैं। जाने-अनजाने में हुए पाप भी खत्म होते हैं।
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