भारत के अलावा आस-पास के अन्य देशों में भी देवी के अनेक शक्तिपीठ हैं। ऐसा ही एक शक्तिपीठ है बांग्लादेश के बगोरा जिले के शेरपुर कस्बे से 28 किलोमीटर दूर भबानीपुर।
उज्जैन. यहां नवरात्रि में कलश पूजा होती है, प्रतिमा की नहीं। यहां के पुजारी रवींद्र नाथ भादूरी के अनुसार, नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में रोज हजारों श्रृद्धालु आते हैं।
18 शताब्दी में हुआ था मंदिर का जीर्णोद्धार
राजा रामकिशन ने 17वीं और 18वीं शताब्दी के बीच यहां 11 मंदिर बनवाए थे। तब उन्होंने इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार करवाया था। यह शक्तिपीठ लगभग पांच एकड़ क्षेत्र में फैला है। यहां देवी के अपर्णा रूप की पूजा होती है। अपर्णा का अर्थ है- जो भगवान शिव को अर्पित है। हर शक्तिपीठ पर देवी के साथ भैरव भी होते हैं। यहां के भैरव का नाम वामन हैं।
यहां गिरी देवी सती की पायल
यहां दिन में तीन बार आरती की परपंरा है। सुबह की आरती को बाल्य भोग कहा जाता है। दोपहर की आरती में अन्न भोग और शाम को महाभोग कहा जाता है। यहां स्थापित भैरव का नाम वामन है। आम दिनों में यहां काली की पूजा होती है। लेकिन नवरात्रि में कलश पूजा की परंपरा है। मान्यता है कि यहां देवी के बाएं पैर की पायल गिरी थी।
मुस्लिम भी हैं माता के भक्त
देवी मंदिर के पास ही तालाब है, जिसे शक तालाब कहा जाता है। इसमें स्नान के बाद दर्शन किया जाता है। मुस्लिम भी यहां नियमित आते हैं। लॉ की पढ़ाई कर रहीं हुमा इस्लाम बताती हैं कि उनका परिवार रामनवमी सहित बड़े उत्सवों के मौके पर शक्तिपीठ मेले में जाता है। भारत, श्रीलंका, नेपाल से यहां हजारों भक्त आते हैं।