Sita Navami 2022: 10 मई को इस विधि से करें श्रीराम और देवी सीता की पूजा और आरती, ये हैं शुभ मुहूर्त

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी (Sita Navami 2022) या जानकी जयंती का पर्व मनाया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी तिथि पर देवी सीता धरती से प्रकट हुई थी। इस बार ये तिथि 10 मई, मंगलवार को है।

Manish Meharele | Published : May 10, 2022 3:13 AM IST

उज्जैन. जानकी नवमी पर देवी सीता की पूजा विशेष रूप से की जाती है। देश में जहां-जहां भी देवी सीता के मंदिर हैं, वहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवी सीता की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और किसी तरह की कोई परेशानी भी नहीं होती। देवी सीता की पूजा के बाद आरती भी करनी चाहिए। इससे पूजा का संपूर्ण फल मिलता है। आगे जानिए देवी सीता की आरती व अन्य खास बातें…

सीता नवमी के शुभ मुहूर्त? (Sita Navami 2022 Ke Shubh Muhurat)
वैशाख शुक्ल की नवमी तिथि 09 मई  की शाम 06: 32 पर शुरू होगी और 10 मई, मंगलवार शाम 07:24 तक रहेगी। उदया तिथि 10 मई को होने से इसी दिन जानकी नवमी का पर्व मनाया जाएगा। शुभ मुहूर्त सुबह 10: 57 से दोपहर 01:39 तक रहेगा।

इस आसान विधि से करें देवी सीता की पूजा (Sita Navami 2022: puja vidhi)
10 मई की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लें। इसके बाद घर के किसी साफ स्थान पर भगवान श्रीराम के साथ देवी सीता का प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। सबसे पहले फूलों की माला अर्पित करें और फूल चढ़एं। इसके बाद शुद्ध घी का दीपक लगाएं। इसके बाद अबीर, गुलाल, कुंकुम, चावल आदि चीजें चढ़ाएं। इनके साथ ही देवी सीता के माता-पिता (राजा जनक और माता सुनयना) का स्मरण भी करना चाहिए। इसके बाद भोग लगाकर आरती करें। अपनी इच्छा अनुसार जरूरतमंदों को दान करें।

ये है देवी सीता की आरती (Sita Navami 2022: Sita Arti)
जगत जननी जग की विस्तारिणी,
नित्य सत्य साकेत विहारिणी,
परम दयामयी दिनोधारिणी,
सीता मैया भक्तन हितकारी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
सती श्रोमणि पति हित कारिणी,
पति सेवा वित्त वन वन चारिणी,
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म मूर्ति धरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
विमल कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पवन मति आई,
सुमीरात काटत कष्ट दुख दाई,
शरणागत जन भय हरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥

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