इस बार 8 अप्रैल 2021 को मध्यरात्रि 3 बजकर 16 मिनट से 9 अप्रैल सूर्योदय से पहले 4 बजकर 57 मिनट तक वारुणी योग रहेगा। इसे वारुणी पर्व भी कहते हैं।
उज्जैन. वैदिक ज्योतिष में इस योग को अत्यंत दुर्लभ माना गया है। वारुणी योग चैत्र माह में बनने वाला एक अत्यंत पुण्यप्रद महायोग कहा जाता है। इसका वर्णन विभिन्न पुराणों में भी मिलता है।
क्यों खास है ये योग?
वारुणी योग में गंगा आदि तीर्थ स्थानों में स्नान, दान और उपवास करने से करोड़ों सूर्य-चंद्र ग्रहणों में किए जाने वाले जप-अनुष्ठान के समान शुभ फल प्राप्त होता है। वारुणी योग के बारे में धर्मसिंधु शास्त्र में कहा गया है…
चैत्र कृष्ण त्रयोदशी शततारका नक्षत्रयुता
वारुणी संज्ञका स्नानादिना ग्रहणादिपर्वतुल्य फलदा।
अर्थात् जब चैत्र कृष्ण त्रयोदशी पर शततारका यानी शतभिषा नक्षत्र हो तो वारुणी योग बनता है, जिसमें स्नानादि का फल ग्रहण काल में स्नान से ज्यादा मिलता है।
कितने प्रकार का होता है ये शुभ योग?
वारुणी महायोग तीन प्रकार का होता है, चैत्र कृष्ण त्रयोदशी को वारुण नक्षत्र यानी शतभिषा हो तो वारुणी योग बनता है। चैत्र कृष्ण त्रयोदशी को शतभिषा नक्षत्र और शनिवार हो तो महावारुणी योग बनता है और चैत्र कृष्ण त्रयोदशी को शतभिषा नक्षत्र, शनिवार और शुभ नामक योग हो तो महा-महावारुणी योग बनता है। इस बार केवल वारुणी योग बन रहा है।
किन कार्यों में लाभ
1. वारुणी योग में शिक्षा संबंधित कामों की शुरुआत की जा सकती है। पढ़ाई, ट्रैनिंग या कोई कोर्स शुरू करने पर उसमें सफलता मिलती है।
2. नए बिजनेस की शुरुआत के लिए भी वारुणी योग शुभ माना गया है। इसमें शुरू किए गए कामों में असफलता नहीं मिलती है।
3. इस शुभ योग में नए प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर सकते हैं। इस दिन नया मकान, दुकान, प्लॉट खरीदना भी शुभ रहता है।